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________________ ४, १, ६१. फेदि अणियोगद्दारे णोआगमदव्वकदिपरूवणा [ २६७ जा सा णोआगमदो दव्वकदी णाम सा तिविहा- जाणुगसरीरदव्वकदी भवियदव्वकदी जाणुगसरीर-भवियवदिरित्तदव्वकदी चेदि ॥ ६१ ॥ जा सा णोआगमदो दव्वकदि त्ति वयणेण पुत्रवुद्दिट्ठा णोआगमदो दव्वकदी संभालिदा अत्थपरूवणङ्कं । जाणयस्स सरीरं जाणयसरीरं । कस्स जाणओ ? कदिपाहुडस्स । कदं वदे ? पयरणवसादो । तदेव दव्वकदी जाणुगसरीरदव्वकदी । भविस्सदि त्ति भविया । Par भविस्सदि ? कदिपज्जाएण | कुदो णव्वदे ? पयरणादो । सा चैव दव्वकदी भवियदव्वदी । तर्हित। वदिरित्ता तव्वदिरित्ता, [ सा चैव दव्वकदी ] तव्वदिरित्तदव्वकदी | जो वह नोआगमसे द्रव्यकृति है वह तीन प्रकार है- ज्ञायकशरीर द्रव्यकृति, भाबी द्रव्यकृति और ज्ञायकशरीर - भाविव्यतिरिक्त द्रव्यकृति ॥ ६१ ॥ ' जो वह नोआगमसे द्रव्यकृति है ' इस वचनसे पूर्वोद्दिष्ट नोआगमसे द्रव्यकृतिका अर्थप्ररूपणा के लिये स्मरण कराया गया है । शायकका शरीर शायकशरीर है । शंका- किसका ज्ञायक ? समाधान - कृतिप्राभृतका शायक । शंका- यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - प्रकरण के सम्बन्धसे वह जाना जाता है । वही ( शायकशरीर स्वरूप ) द्रव्यकृति शायकशरीरद्रव्यकृति कहलाती है । जो आगे होनेवाली है उसका नाम भावी है । शंका- किस रूपसे होनेवाली है ? समाधान - कृतिपर्यायसे होनेवाली है । शंका- यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान - वह प्रकरणसे जाना जाता है । -- aft द्रव्यकृति भावी द्रव्यकृति है । इन दोनों कृतियोंसे व्यतिरिक्त तद्व्यतिरिक्त है, तद्व्यतिरिक्त ऐसी जो हाते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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