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________________ २५० छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १,५३. ‘णर-वराहादिसरूवेण घडिदघराणि गिहकम्ममिदि वुत्तं होदि । घरकुड्डेसु तदो अभेदेण चिदपडिमाओ' भित्तिकम्मं । हत्थिदंतेसु किण्णपडिमाओ दंतकम्मं । भेंडो सुप्पसिद्धो, तेण घडिदपडिमाओ भेडकम्मं । एदे सम्भावट्ठवणा । एदे देसामासया दस परूविदा ।। संपहि असब्भावट्ठवणाविसयस्सुवलक्खणटुं भणदि- अक्खे त्ति वुत्ते जूवक्खो सयडक्खो वा घेत्तव्यो । वराडओ त्ति वुत्ते कवड्डिया घेत्तवा । जे च अण्ण एवमादिया त्ति वयणं दोण्णं अवहारणपडिसेहफलं । तेण थंभ-तुला-हल-मुसलकम्मादीणं गहण । स्थाप्यतेऽस्मिन्निति स्थापना। अमा अभेदेण, ठवणाए सद्भावासद्भावस्थापनायाम् , ठविज्जति कृतिरिति स्थाप्यन्ते, सा सव्वा ठवणकदी णाम । जा सा दव्वकदी णाम सा दुविहा आगमदो दव्वकदी चेव णोआगमदो दव्वकदी चेव ॥ ५३॥ हाथी, मनुष्य एवं वराह (शूकर) आदिके स्वरूपसे निर्मित घर गृहकर्म कहलाते हैं, यह अभिप्राय है। घरकी दीवालोंमें उनसे अभिन्न रची गई प्रतिमाओंका नाम भित्तिकर्म है। हाथी दांतोपर खोदी हुई प्रतिमाओंका नाम दन्तकर्म है । भेंड सुप्रसिद्ध है। उससे निर्मित प्रतिमाओंका नाम भेंडकर्म है । ये सद्भावस्थापनाके उदाहरण हैं । ये दस देशामर्शक कहे गये हैं। अब असद्भावस्थापनासम्बन्धी विषयके उपलक्षणार्थ कहते हैं-अक्ष ऐसा कहनेपर छूताक्ष अथवा शकटाक्षका ग्रहण करना चाहिये । वराटक ऐसा कहनेपर कपर्दिका का ग्रहण करना चाहिये। इस प्रकार इनको आदि लेकर और भी जो अन्य हैं इस वचनका प्रयोजन दोनों (अक्ष व वराटक) के अवधारणका प्रतिषेध करना है । इसलिये स्तम्भकर्म,तुलाकर्म, हलकर्म व मूसलकर्म आदिकोंका ग्रहण होता है। जिसमें स्थापित किया जाता है वह स्थापना है। अमा अर्थात अभेद रूपसे, स्थापना अर्थात सदभाव व असदभाव रूप स्थापनामें 'कृति है' इस प्रकार जो स्थापित किये जाते हैं वह सब स्थापनाकृति कही जाती है। जो वह द्रव्यकृति है वह दो प्रकार है- आगमसे द्रव्यकृति और नोआगमसे द्रव्यकृति ॥ ५३॥ १ आ-काप्रत्योः • चित्तपडिमाओ' इति पाठः । ३ अक्षः चन्दनकः। अनु. टोका सू. १०. २ प्रतिषु • जोवक्खो' इति पाठः । ४ वराटकः कपर्दकः । अनु. टीका सू. १०, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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