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________________ छक्खंडागमे वैयणाखंड (४, १,५१. णामकदी जुज्जदे, दव्वट्ठियणयं मोत्तूण अण्णत्थ सण्णासण्णिसंबंधाणुववत्तीदो ? खणक्खइभावमिच्छताणं सपणासण्णिसंबंधा मा घडंतु णाम । किंतु जेण सद्दणया सद्दजणिदभेदपहाणा तेण 'सण्णासण्णिसंबंधाणमघडणाए अणत्थिणो । सगब्भुवगमम्हि सण्णासण्णिसंबंधो अस्थि चेवे त्ति अज्झवसायं काऊण ववहरणसहावा सद्दणया, तेसिमण्णहा सद्दणयत्ताणुववत्तीदो । तेण तिसु सद्दणएसु णामकदी वि जुज्जदे । संपधि णिक्खेवत्थपरूवणत्थमुवरिमसुत्तं भणदि (जा सा णामकदी णाम सा जीवस्स वा, अजीवस्स वा, जीवाणे वा, अजीवाणं वा, जीवस्स च अजीवस्स च, जीवस्स च अजीवाणं च, जीवाणं च अजीवस्स [च], जीवाणं च अजीवाणं च' ॥ ५१ ॥ जस्स णाम कीरदि कदि ति सा सव्वा णामकदी णाम । सत्तसु कदीसु जा सा द्रव्यार्थिक नयको छोड़कर अन्य नयों में संज्ञा-संशी सम्बन्ध बन नहीं सकता। समाधान-पदार्थको क्षणक्षयी स्वीकार करनेवालोंके यहां संज्ञा-संझी सम्बन्ध भले ही घटित न हो, किन्तु चूंकि शब्दनय शब्द जनित भेदकी प्रधानता स्वीकार करते हैं अतः वे संज्ञा-संशी सम्बन्धोंके अघटनको स्वीकार नहीं कर सकते। इसीलिये स्वमतमें संज्ञा-संशी सम्बन्ध है ही, ऐसा निश्चय करके शब्दनय भेद करने रूप स्वभाववाले हैं, क्योंकि, इसके विना उनके शब्दनयत्व ही नहीं बन सकता। अत एव तीन शब्दनयोंमें नामकृति भी उचित है । अब निक्षेपार्थकी प्ररूपणाके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं जो वह नामकृति है वह एक जीवके, एक अजीवके, बहुत जीवोंके, बहुत अजीवोंके, एक जीव और एक अजीवके, एक जीव और बहुत अजीवोंके, बहुत जीव और एक अजीवके अथवा बहुत जीवों और बहुत अजीवोंके होती है ॥ ५१॥ जिसका ‘कृति' ऐसा नाम किया जाता है वह सब नामकृति कहलाती है । सात १ इतः प्रारभ्यं सगम्भुवगमम्हि पर्यन्तः पाठः प्रतिषु नास्ति, मप्रती तूपलभ्यते ।। २५. खे. पु. १, पृ. १९. से किं तं नामांवस्सयं ? जस्स ण जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयरस वा तदुभयाण वा आवस्सए त्ति नामं कज्जह से तं नामविस्सयं । अनु. सू. ९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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