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________________ २४४] छखंडागमे वेयणाखंड [४, १, ४९. अविरोहे वा छवणकदी वि इच्छिज्जउ, विसेसाभावादो त्ति ? एत्थ परिहारो वुच्चदेउजुसुदो दुविहो सुद्धो असुद्धो चेदि । तत्थ सुद्धो विसईकयअत्थपज्जाओ पडिक्खणं विवट्टमाणासेसत्थो अप्पणो विसयादो ओसारिदसारिच्छ-तब्भावलक्खणसामण्णो । एदस्स भावं मोत्तण अण्णकदीओ ण संभवंति, विरोहादो । तत्थ जो सो असुद्धो उजुसुदणओ सो चक्खुपासियवेंजणपज्जयविसओ। तेसिं कालो जहण्णेण अंतोमुहुत्तमुक्कस्सेण छम्मासा संखेज्जा वासाणि वा । कुदो ? चक्खिदियगेझवेंजणपज्जायाणमप्पहाणीभूददव्वाणमेत्तियं कालमवट्ठाणुवलंभादो । जदि एरिसो वि पज्जवट्ठियणओ अत्थि तो ( उपजंति वियंति य भावा णियमेण पज्जवणयस्स । दव्ववियस्स सव्यं सदा अणुप्पण्णमविणहूँ ॥ ९० ॥ ( इच्चेएण सम्मइसुत्तेण सह विरोहो होदि ति उत्ते ण होदि, एदेण असुद्ध उजुसुदेण विरोध नहीं है तो फिर स्थापनाकृतिको भी ऋजुसूत्र नयका विषय स्वीकार करना चाहिये, क्योंकि उसमें कोई विशेषता नहीं है ? समाधान- यहां इस शंकाका परिहार कहते हैं- ऋजुसूत्र नय शुद्ध और अशुद्ध ऋजुसूत्र नयके भेदसे दो प्रकार है। उनमें अर्थपर्यायको विषय करनेवाला शुद्ध ऋजुसूत्र नय प्रत्येक क्षणमें परिणमन करनेवाले समस्त पदार्थोको विषय करता हुआ अपने विषयसे सादृश्य सामान्य और तद्भाव रूप सामान्यको दूर करनेवाला है। अतः भावकृतिको छोड़कर अन्य कृतियां इसकी विषय सम्भव नहीं है, क्योंकि, इसमें विरोध है। उनमें जो अशुद्ध ऋजुसूत्र नय है वह चक्षु इन्द्रियकी विषयभूत व्यञ्जनपर्यायोंको विषय करनेवाला है। उन पर्यायोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे छह मास अथवा संख्यात वर्ष है, क्योंकि, चक्षु इन्द्रियसे ग्राह्य व्यञ्जन पर्यायें द्रव्यकी प्रधानतासे रहित होती हुई इतने काल तक अवस्थित पायी जाती हैं। शंका- यदि ऐसा भी पर्यायार्थिक नय है तो पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा पदार्थ नियमसे उत्पन्न होते हैं और नष्ट भी होते हैं। किन्तु द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा सब पदार्थ सदा उत्पाद और विनाशसे रहित हैं ॥ ८८॥ इस सन्मतिसूत्रके साथ विरोध होगा ? समाधान नहीं होगा, क्योंकि, अशुद्ध ऋजुसूत्रके द्वारा व्यजनपर्याय ही १ स. सू. १-११;ष. खं. पु. १, पृ. १३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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