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________________ १, १, १५.] कदिअणियोगद्दारे सुत्तावयरणं [२१५ विरोधात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः। वर्तमानघटो वर्तमानघटरूपेणास्ति, नातीतानागतघटै, विरोधात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यो घटः । अथवा चक्षुरिन्द्रियग्राह्यघटः स्वरूपेणास्ति, न तदग्राह्यघटरूपेण, विरोधात् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा व्यञ्जनपर्यायेणास्ति घटः, नार्थपर्यायेण । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा ऋजुसूत्रनयविषयीकृतपर्यायैरस्ति घटः, न शब्दादिनयविषयीकृतपर्यायैः। ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा शब्दनयविषयीकृतपर्यायैरस्ति घटः, न शेषनयविषयीकृतपर्यायैः। ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः। अथवा समभिरूढनयविषयीकृतपर्यायैरस्ति घटः, न शेषनयविषयैः । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा एवम्भूतनयविषयीकृतपर्यायैरस्ति घटः, न शेषनयविषयैः । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवोपयोगरूपेणास्ति घटः, नार्थाभिधानाभ्याम् । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवोपयोगघटोऽपि वर्तमानरूपतयास्ति, नातीतानागतोपयोगघटैः। ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । अथवा घटोपयोगघटः स्वरूपेणास्ति, न पटोपयोगादिरूपेण । ताभ्यामक्रमेणादिष्टोऽवक्तव्यः । इत्यादिप्रकारेण सकलार्थानामस्तित्व-नास्तित्वावक्तव्यभंगा योज्याः। अस्तित्व-नास्तित्वाभ्यां क्रमेण पत् कहा गया घट अवक्तव्य है। वर्तमानघट वर्तमानघट रूपसे है, अतीत व अनागत घटोंकी अपेक्षा यह नहीं है, क्योंकि, ऐसा होनेमें विरोध है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है । अथवा चक्षु इन्द्रियसे ग्राह्य घट स्वरूपसे है, चक्षु इन्द्रियसे अग्राह्य घट रूपसे वह नहीं है, क्योंकि, ऐसा होने में विरोध है। उन दोनोंसे यगपत कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा व्यञ्जन पयार्यसे घट है, अर्थपर्यायसे नहीं है। उन दोनों धौंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा ऋजुसूत्र नयसे विषय की गई पर्यायोंसे घट है, शब्दादि नयोंसे विषय की गई पर्यायोंसे वह नहीं है । उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा शब्दनयसे विषय की गई पर्यायोंसे घट है, शेष नयोंसे विषय की गई पर्यायोंसे वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा समभिरूढनयसे विषय की गई पर्यायोंसे घट है, शेष नयोंसे विषय की गई पर्यायोंसे वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा एवम्भूत नयसे विषय की गई पर्यायोसे घट है, शेष नयोंसे विषय की गई पर्यायोसे वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है । अथवा उपयोग रूपसे घट है, अर्थ और अभिधानकी अपेक्षा वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया अवक्तव्य है । अथवा उपयोगघट भी वर्तमान स्वरूपसे है, अतीत व अनागत उपयोगघटोंकी अपेक्षा वह नहीं है। उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है। अथवा घटोपयोगस्वरूपसे घट है, पटोपयोगादि रूपसे नहीं है । उन दोनोंसे युगपत् कहा गया घट अवक्तव्य है । इत्यादि प्रकारसे सब पदार्थोके अस्तित्व, नास्तित्व व अवक्तव्य भंगोंको कहना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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