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________________ १, १, १५.] . कदिअणियोगद्दारे णयपरूवणा [ १८३ ( नयोपनयकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । अविनाड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा' ॥ ६२ ॥ एयदवियम्मि जे अस्थपञ्जया वयणपज्जया चावि । तीदाणागदभूदा तावदिय तं हवइ दव्यं ।। ६३ ॥ धर्मे धर्मेऽन्य एवार्थो धर्मिणोऽनन्तधर्मणः । अंगित्वेऽन्यतमान्तस्य शेषान्तानां तदंगता' ।। ६४ ॥ स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, स्यादवक्तव्यम् , स्यादस्ति च नास्ति च, स्यादस्ति चावक्तव्यं च, स्यान्नास्ति चावक्तव्यं च, स्यादस्ति च नास्ति चावक्तव्यं च इति एतानि सप्त सुनयवाक्यानि प्रधानीकृतैकधर्मत्वात् । न चैतेषु सप्तस्वपि वाक्येषु स्याच्छब्दप्रयोगनियमः', तथा प्रतिज्ञाशयादप्रयोगोपल भात् । सावधारणानि वाक्यानि दुर्णयाः। एवं णयो परूविदो। नय एकान्त और उपनय एकान्तका विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायोंका अभिन्न सत्ता. सम्बन्ध रूप समुदाय द्रव्य कहलाता है । वह द्रव्य कथंचित् एक और कथंचित् अनेक है ॥ ६२ ॥ एक द्रव्यमें जितनी अतीत व अनागत अर्थपर्याय और व्यञ्जनपर्याय होती हैं उतने मात्र वह द्रव्य होता है ॥ ६३ ॥ अनन्त धर्म युक्त धर्म के प्रत्येक धर्ममें अन्य ही प्रयोजन होता है। सब धर्मों में किसी एक धर्मके अंगी होनेपर शेप धर्म अंग होते हैं ॥ ६४॥ कथंचित् है, कथंचित् नहीं है, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् है और नहीं है, कथंचित् है और अवक्तव्या है, कथंचित् नहीं है और अबक्तव्य है, कथंचित् है नहीं है और अवक्तव्य है, इस प्रकार ये सात सुनयवाक्य हैं, क्योंकि वे एक धर्मको प्रधान करते हैं। इन सातों ही वाक्योंमें 'स्यात्' शब्दके प्रयोगका नियम नहीं है, क्योंकि, वैसी प्रतिज्ञाका आशय होनेसे अप्रयोग पाया जाता है। ये ही वाक्य सावधारण अर्थात् अन्यव्यावृत्ति रूप होनेपर हुर्नय हो जाते हैं । इस प्रकार नयकी प्ररूपणा समाप्त हुई। १ आ. मी. १०७. २ षट्खं. पु. १, पृ. ३८६, जयध. पृ. २५३. २ आ. मी. २२. ४ प्रतिषु प्रधानानिस्तेक... ' इति पाठः। ५ अप्रती ' स्यात्छब्दः प्रयोगनियमः' आ-काप्रयोः स्यात्प्रयोगनियमः' इति पाठः। ६ प्रतिषु 'सा च धारणानि इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jairnelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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