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________________ १७४) छक्खंडागमे वेयणाखंड ( १, १, ४५. स्वभावद्वयविरोधात् अवयवेष्वेव व्याप्रियमाणपुरुषोपलम्भाच्च । 'स्थितप्रश्ने च कुतोऽयागच्छसीति, न कुतश्चिदित्ययं मन्यते, तत्कालक्रियापरिणामाभावात् । यमेवाकाशदेशमवगा, समर्थः आत्मपरिणामं वा तत्रैवास्य वसतिः। न कृष्णः काकोऽस्य नयस्य । कथम् ? यः कृष्णः स कृष्णात्मक एव, न काकात्मकः; भ्रमरादीनामपि काकताप्रसंगात् । काकश्च काकात्मको, न कृष्णात्मकः; शुक्लकाकाभावप्रसंगात् तत्पित्तास्थि-रुधिरादीनामपि काण्यप्रसंगात् । अस्तु चेन्न, तेषां पीत-शुक्ल-रक्तादिवर्णोपलम्भात् । न च तेभ्यो व्यतिरिक्तः काकोऽस्ति, तद्व्यतिरेकेण काकानुपलम्भात् । ततोत्र न विशेषण-विशेष्यभाव इति सिद्धम् । 'न चास्य नयस्य सामानाधिकरण्यमप्यस्ति, एकस्य पीयेभ्य अनन्यत्वात् । न च पर्यायव्यतिरिक्तं नित्यमेक नहीं है, क्योंकि, एक साथ एकमें दो स्वभावोंका विरोध है, तथा पुरुष अवयवोंमें ही म्यापार करनेवाला पाया जाता है। 'आज तुम कहांसे आ रहे हो ? ' ऐसा किसी स्थित व्यक्तिसे पूछनेपर 'कहींसे नहीं आ रहा हूं' ऐसा यह ऋजुसूत्र नय मानता है, क्योंकि, उस समय आगमन क्रिया रूप परिणामका अभाव है। जिस आकाशप्रदेशको अथवा आत्मपरिणामको अवगाहनेके लिये वह समर्थ है वहींपर इसका निवास है। 'कृष्ण काक' यह इस नयका विषय नहीं है। कारण कि जो कृष्ण है वह कृष्णात्मक ही है, काक स्वरूप नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर भ्रमर आदिकोंके भी काक होनेका प्रसंग आवेगा। इसी प्रकार काक भी काकात्मक ही है, कृष्णात्मक नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर सफेद काकके अभावका प्रसंग आवेगा, तथा उसके पित्त (शरीरस्थ धातुविशेष ), हड्डी व रुधिर आदिके भी कृष्णताका प्रसंग आवेगा। यदि कहा जाय कि वे भी कृष्ण होते हैं, सो ऐसा नहीं है, क्योंकि, क्रमशः उनका पीला, सफेद घ लाल रंग पाया जाता है। और इन धातुओंसे भिन्न काक है नहीं, क्योंकि, उनको छोड़कर काक पाया नहीं जाता। इसीलिये इस नयकी दृष्टि में विशेषण-विशेष्यभाव नहीं है, यह सिद्ध हुआ। इस नयकी दृष्टिम सामानाधिकरण्य (एक आधारमें समान रूपसे रहना) भी नहीं है, क्योंकि, एक द्रव्य पर्यायोंसे भिन्न नहीं है । तथा पर्यायोंको छोड़कर नित्य, एक, २१. रा. १, ३३, ७. अगष. १, १. २११. १ ते. री. १, ३३, ७. जयध. १, पृ. २३५. ३ प्रतिषु कथ यकृष्णः' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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