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________________ १३०] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, १, ११. भडारओ वड्डमाणजिणतित्थगथकत्तारो । उत्तं च - वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि साबणे बहुले ।। पाडिवदपुव्यदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्मि' ॥ ४० ॥) __ एवं उत्तरतंतकत्तारपरूवणा कदा । संपहि उत्तरोत्तरतंतकत्तारपरूवणं कस्सामो। तं जहा- कत्तियमासकिण्णपक्खचोद्दसरत्तीए पच्छिमभाए महदिमहावीरे णिव्बुदे संते केवलणाणसंताणहरो गोदमसामी जादो । बारहवरसाणि केवलविहारेण विहरिय गोदमसामिम्हि णिव्बुदे संते लोहज्जाइरिओ केवलणाणसंताणहरो जादो । बारहवासाणि केवलविहारेण विहरिय लोहज्जभडारए णिब्बुदे संते जंबूभडारओ केवलणाणसंताणहरो जादो। अट्टत्तीसवस्साणि केवलविहारेण विहरिय जंबूभडारए परिणिव्वुदे संते केवलणाणसंताणस्स वोच्छेदो जादो भरहक्खेत्तम्मि। एवं महावीरे णिव्वाणं गदे बासहिवरसेहि केवलणाणदिवायरो भरहम्मि अत्थमिदि । ६२ । ३।। णवरि तक्काले सयलसुदणाणसंताणहरो विष्णुआइरियो जादो । तदो अत्तुट्टसंताणरूवेण णंदिआइरिओ अवराइदो गोवद्धणो भद्दबाहु त्ति एदे सकलसुदधारया जादा । एदेसिं पंचण्हं पि सुदकेवलीणं काल थी, अतएव इन्द्रभूति भट्टारक वर्धमान जिनके तीर्थमें ग्रन्थकर्ता हुए । कहा भी है वर्षके प्रथम मास व प्रथम पक्षमें श्रावण कृष्ण प्रतिपदाके पूर्व दिनमें अभिजित् नक्षत्रमें तीर्थकी उत्पत्ति हुई ॥ ४० ॥ इस प्रकार उत्तरतंत्रकर्ताकी प्ररूपणा की। अब उत्तरोत्तर तंत्रकर्ताओंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- कार्तिक मासमें कृष्ण पक्षकी चतुर्दशीकी रात्रिके पिछले भागमें अतिशय महान् महावीर भगवान्के मुक्त होनेपर केवलज्ञानकी सन्तानको धारण करनेवाले गौतम स्वामी हुए । बारह वर्ष तक केवलविहारसे विहार करके गौतम स्वामीके मुक्त हो जानेपर लोहार्य आचार्य केवलज्ञानपरम्पराक धारक हुए । बारह वर्षे केवलविहारसे विहार करके लोहार्य भट्टारकके मुक्त हो जानेपर जम्बू भट्टारक केवलज्ञानकी परम्पराके धारक हुए । अड़तीस वर्ष केवलविहारसे विहार करके जम्बू भट्टारकके मुक्त हो जानेपर भरत क्षेत्रमें केवलज्ञानपरम्पराका व्युच्छेद हो गया। इस प्रकार भगवान् महावीरके निर्वाणको प्राप्त होनेपर बासठ वर्षोंसे केवलज्ञान रूपी सूर्य भरत क्षेत्रमें अस्त हुआ [६२ वर्षमें ३ के.] । विशेष यह है कि उस कालमें सकल श्रुतज्ञानकी परम्पराको धारण करनेबाले विष्णु आचार्य हुए । पश्चात् अविछिन्न सन्तान स्वरूपसे नन्दि आचार्य, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु, ये सकल श्रुतके धारक हुए । इन पांच १ष. खं. पु. १, पृ. ६३; ति. प. १, ६९. २ जयध, १, पृ. ८४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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