________________
१, १, १८.] कदिअणियोगदारे पण्णसंमणरिद्धिपरूवणा
[ ८३ उसहसेणादीणं तित्थयरवयणविणिग्गयबीजपदट्ठावहारयाणं पण्णाए कत्थंतब्भावो १ पारिणामियाए, विणय-उप्पत्ति-कम्मेहि विणा उप्पत्तीदो । पारणामिय-उप्पत्तियाणं को विसेसो ? जादिविसेसजणिदकम्मक्खओवसमुप्पण्णा पारिणामिया, जम्मंतरविणयजणिदसंसकारसमुप्पण्णा अउप्पत्तिया त्ति अस्थि विसेसो । एदेसु पण्णसमणेसु केसिं गहणं ? चदुण्डं पि गहणं । प्रज्ञा एव श्रवण येषां ते प्रज्ञाश्रवणाः । तदो ण वैणइयपण्णसमणाणं गहणमिदि ? ण, अदिट्ठ-अस्सुदेसु अढेसु णाणुप्पायणजोगतं पण्णा णाम, तिस्से सवत्थ उवलंभादो । गुरूवदेसेणावगयचोदसपुव्वे कहमस्सुदत्थावगमो ? ण, अणभिलप्पत्थविसयणाणुप्पायणसत्तीए तत्थाभावे सयलसुद
शंका-तीर्थकरके मुखसे निकले हुए बीजपदोंके अर्थका निश्चय करनेवाले वृषभसेनादि गणधरोंकी प्रज्ञाका कहां अन्तर्भाव होता है ?
समाधान - उसका पारिणामिक प्रज्ञामें अन्तर्भाव होता है, क्योंकि, वह विनय, उत्पत्ति और कर्मके विना उत्पन्न होती है।
शंका -पारिणामिक और औत्पत्तिक प्रज्ञामें क्या भेद है ?
समाधान-जातिविशेषमें उत्पन्न कर्मक्षयोपशमसे आविर्भूत हुई प्रज्ञा पारिणामिक है, और जन्मान्तरमें विनयजनित संस्कारसे उत्पन्न प्रज्ञा औत्पत्तिकी है, यह दोनोंमें भेद है। . शंका-इन प्रशाश्रवणोंमें यहां किनका ग्रहण है ?
समाधान-चारों ही प्रशाश्रमणोंका ग्रहण है, क्योंकि, 'प्रज्ञा ही है श्रवणं जिनका वे प्रज्ञाश्रवण हैं ' ऐसी निरुक्ति है ?
शंका-तो फिर वैनयिक प्रज्ञाश्रवणोंका ग्रहण नहीं हो सकेगा ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, अदृष्ट और अश्रुत अर्थो में शानोत्पादनकी योग्यताका नाम प्रज्ञा है, सो वह सर्वत्र पायी जाती है।
शंका-गुरूके उपदेशसे चौदह पूर्वोका ज्ञान प्राप्त करनेवाले प्रशाश्रवणके अश्रुत अर्थका शान कैसे कहा जा सकता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उसमें अवक्तव्य पदार्थ विषयक ज्ञानके उत्पादनकी
१ प्रतिषु ' कथंतब्भावो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org