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________________ ७.1 छक्खडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, ३४. उवरिमगुणट्ठाणेसु देवगइसंजुत्तं बंधति, सेसगुणट्ठाणाणं णिरयगइबंधेण सह विरोहादो । पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइय-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद परघाद-उस्सास-तसबादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-णिमिणणामाओ मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणो तिगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छादिटि-असंजदसम्मादिट्टिको दुगइसंजुत्तं, उवरिमा देवगइसंजुत्तं बंधंति । समचउरससंठाण-पसत्थविहायगइ-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेजणामाओ मिच्छाइट्टि-सासणसम्मादिट्टिणो तिगइसंजुत्तं, णिरयगईए अभावादो । सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो दुगइसंजुत्तं, णिरय तिरिक्खगईणमभावाद। । उवरिमा देवगइसंजुत्तं, तत्थ सेसगईणं बंधाभावादो। . देवगदि-देवगदिपाओग्गाणुपुब्धि-उब्वियसरीर वे उब्वियसरीरअंगोवंगणामाण बंधस्स तिरिक्ख मगुस्स गइ मिन्छाइट्ठि-सासणसम्माइटि-सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्माइटि-संजदासंजदा सामी । उवरिमा मणुसा चेव, अण्णत्थ तेसिमभावादो। पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीरसमचउरससंठाण-वग्ण-गंध-रस-फास-अगुरुखलहुव-उवधाद-परबाद उस्सास-पसत्थविहायगइतस-चादर-पजत्त-पत्तेयसरीर-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज-णिमिणणामाणं चउगइमिच्छाइट्ठिसासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्भादिट्टिणो, दुगइसंजदासंजदा, मणुसगइपमत्तादओ गुणस्थानोंमें देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, शेष गुणस्थानोंका नरकगतिबन्धके साथ विरोध है । पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलधु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर और निर्माण नामकर्मीको मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त, सम्यग्मिथ्याटष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टि दो गतियोंसे संयुक्त, तथा उपरिम जीव देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर और आदेय नामकर्मोंको मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, इनके बन्धके साथ उनके नरकगतिके बन्धका अभाव है। सम्याग्मथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि दो गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, उनके नरकगति और तिर्यग्गतिके बन्धका अभाव है । उपरिम जीव देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, उनमें शेष गतियोंके बन्धका अभाव है। देवगति, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीरांगोपांग नामकौके बन्धके तिर्यंच वमनुष्य गतिवाले मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत स्वामी हैं। उपरिम जीव मनुष्य ही स्वामी हैं, क्योंकि, अन्यत्र प्रमत्तसंयतादिकों का अभाव है । पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माण नामकर्मोंके बन्धके चारों गतियोंवाले मिथ्यादृष्टि., सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्याग्मथ्यादष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टिः दो गतियोंवाले संयतासंयत, तथा मनुष्यगतिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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