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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, २१. सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी देवगइ-मणुसगइसंजुत्तं, संजदासजदा देवगइसंजुत्तं बंधति । एदासिं चउगइमिच्छाइटि-सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो बंधस्स सामी। संजदासजदा दुगइया सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं च सुगमं । एदासिं बंधो मिच्छाइदिम्हि चउव्विहो, सत्तेदालीसधुवबंधपयडीसु पादादो । उवरिमेसु गुणहाणेसु तिविहो, दुविहाभावादो।
पुरिसवेद-कोधसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २१ ॥
सुगमं ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टिवादरसांपराइयपइट्ठउवसमा खवा बंधा। अणियट्टिवादरद्धाए सेसे संखेज्जाभागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २२ ॥
'मिच्छादिटिप्पहुडि उवसमा खवा बंधा' एदेण सुत्तावयवेण गुणट्टाणगर्यबंध
गतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त, सम्यग्मिथ्याढष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवगति एवं मनुष्यगतिसे संयुक्त, तथा संयतासंयत देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं। चारों गतियोंके मिथ्याष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि इन प्रकृतियों के बन्धके स्वामी हैं। दो गतियोंके संयतासंयत स्वामी हैं। बन्धाध्वान और बन्धविनष्टस्थान स्थान सुगम हैं। मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें इनका चारों प्रकारका बन्ध है, क्योंकि, ये सैंतालीस ध्रुवबन्धप्रकृतियों में आती हैं। उपरिम गुणस्थानोंमें तीन प्रकारका बन्ध है, क्योंक, वहां दो प्रकारके बन्धका अभाव है।
पुरुषवेद और संज्वलनक्रोधका कौन बन्धक और कौन अबन्धक ? ॥ २१ ॥ यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरणबादरसाम्परायिकप्रविष्ट उपशमक एवं क्षपक तक पन्धक हैं। अनिवृत्तिबादरकालके शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर बन्धव्युच्छेद होता है। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ २२ ॥
'मिश्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक और क्षपक बन्धक हैं ' इस
१ अप्रतौ · देवं आप्रतौ · देवगइ कांप्रती · देवगई ' इति पाठः । २ प्रतिषु । गइय-' इति पाठः ।
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