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________________ ४६) खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, १७. ___ अपच्चक्खाणावरणीयकोध-माण-माया-लोभ-मणुसगइ-ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहवइरणारायणसंघडणमणुसगइपाओग्गाणुपुरिणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १७॥ सुगमं । मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १८ ॥ एदं देसामासियसुत्तं, सामित्तद्धाणाणं' चेव परूवणादो । तेणेदेण सूइदत्थपरूवणा कीरदे । तं जहा- अपच्चक्खाणावरणचउक्कस्स मणुसगइपाओग्गाणुपुविणामाए बंधोदया समं वोच्छिज्जति, एक्कम्हि असंजदसम्माटिम्हि दोण्णं विणासुवलंभादो । मणुसगईए पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिण्णो, असंजदसम्मादिट्टिम्हि बंधे पट्टे पच्छा अजोगिचरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदादो । एवमोरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहवइरणारायणसंधडणाणं । णवरि सजोगिचरिमसमए उदयवोच्छेदो । अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्षभवज्रनाराचसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १७ ॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बंधक है । ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ १८ ॥ यह देशामर्शक सूत्र है, क्योंकि, वह केवल वन्धस्वामित्व और वन्धाध्वानका ही निरूपण करता है। इसी कारण इस सूत्रसे सूचित अर्थको प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है-अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मका बन्ध और उदय दोनों साथमें व्यच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, एक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें दोनोंके विनाश पाये जाते हैं । मनुष्यगतिका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें वन्धके नष्ट होनेपर पीछे अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद होता है। इसी प्रकार औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग और वज्रर्षभवज्रनाराचसंहननका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है । विशेष इतना है कि सयोगीके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद होता है । २ प्रतिषु ‘विणासाणुवलंभादो' इति पाटुः । १ प्रतिषु 'सामित्तद्वाणिणं ' इति पाठः । ३ प्रतिषु सम्मादिट्ठीहि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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