________________
३, १४.] ओघेण असादावेदणीयादीणं बंबसामित्तपरूत्रणा [१ सुत्तमेदमिदि दट्टव्वं । तण्णिण्णयजणण,मुत्तरसुत्तं भणदि. ---
मिच्छादिटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १४ ॥
एदं देसामासियं सुत्तं, पुच्छिदत्थाणमेगदेसं छिविदूण अवट्ठाणादो । तेणेदेण सूइदत्थाणं अत्थपरूवणा कीरदे । असादावेदणीयस्स पुव्वं बंधो उदओ पच्छा वोच्छिण्णो, पमत्तसंजदम्मि बंधवोच्छेदे संते पच्छा अजोगिचरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदादो । एवमरदि-सोगाणं, पमत्तसंजदम्मि बंधे णटे संते अपुवचरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदादो । अथिर-असुहाणं पि एवं चेव वत्तव्यं, पमत्तम्मि बंधे विणटे सजोगिचरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदादो । अजसगित्तीए पुवमुदओ वोच्छिज्जदि पच्छा बंधो, असंजदसम्मादिदिम्हि उदए णडे पच्छा पमत्तसंजदम्मि बंधवोच्छेदादो।
असादावेदणीय-अरदि-सोगा सोदय-परोदएहि बझंति, उदयस्स धुवत्ताभावादो ।
यह आशंका सूत्र है ऐसा समझना चाहिये। उसके निश्चयोत्पादनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
मिथ्यादृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ १४ ॥
___ यह देशामर्शक सूत्र है, क्योंकि, वह पूछे हुए अर्थोके एक देशको छूकर अवस्थित है। इस कारण इसके द्वारा सूचित अधोंकी प्ररूपणा की जाती है। सातावेदनीयका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, प्रमत्तगुणस्थानमें वन्धव्युच्छेद होजानेपर पीछे अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद होता है । इसी प्रकार अरति और शोकका वन्ध पूर्वमें और उदय पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, प्रमत्तसंयतमें वन्धके नष्ट होजानेपर पीछे अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद होता है । अस्थिर और अशुभ प्रकृतियोंका भी इसी प्रकार ही बन्धोदयव्युच्छेद कहना चाहिये, क्योंकि, प्रमत्तसंयतमें बन्धके नष्ट होनेपर सयोगकेवलीके अन्तिम समयमें उदयका व्युच्छेद होता है । अयशकीर्तिका पूर्वमें उदय व्युच्छिन्न होता है, पश्चात् बन्ध, क्योंकि असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उदयके नष्ट होजाने पर पीछे प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें वन्धका व्युच्छेद होता है ।
असातावेदनीय, अरति और शोक प्रकृतियां स्वोदय-परोदयसे बंधती है, क्योंकि,
१ अ-आप्रत्योः । णियजणण?-' इति पाठः । छ. बं. ६.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org