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________________ ३, ६.] सामण्णपडिपच्चयपरूवणी (१ अहिणिवेसो संसयमिच्छत्त' । एवमेदे मिच्छत्तपच्चया पंच । ५ ।। असंजमपच्चओ दुविहो इंदियासंजम-पाणासजमभएण । तत्थ इंदियासंजमो छव्विहो परिस-रस-रूव-गंध-सद्द-णोइंदियासंजमभेएण । पाणासंजमो वि छविहो पुढवि-आउ-ते उ-वाउवणप्फदि-तसासंजमभेएण । असंजमसव्वसमासो बारस | १२।। कसायपच्चओ पंचवीसविहो सोलसकसाय-णवणोकसायभेएण । कसायपच्चयसमासो एसो |२५। । जोगपच्चओ तिविहो मण-वचि-कायजोगभेएण । सच्च-मोस-सच्चमोस-असच्चमोसभेएण चउव्विहो मणजोगा। वचिजोगो वि चउव्विहो सच्च-मोस-सच्चमोस-असच्चमोसभेएण' । कायजोगो सत्तविहो ओरालिय-ओरालियमिस्स-वेउब्विय-वेउव्वियमिस्स-आहार-आहारमिस्स-कम्मइयकायजोगभेएण । एदेसिं सव्वसमासो पण्णारस ।१५। । सव्वपच्चयसमासो सत्तावण्ण हैं । इस प्रकार ये मिथ्यात्व प्रत्यय पांच (५) हैं। असंयम प्रत्यय इन्द्रियासंयम और प्राण्यसंयमके भेदसे दो प्रकार है। उनमें इन्द्रियासंयम स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, शब्द और नोइन्द्रिय जनित असंयमके भेदसे छह प्रकार है। प्राण्यसंयम भी पृथिवी, अप् , तेज, वायु, वनस्पति और त्रस जीवोंकी विराधनासे उत्पन्न असंयमके भेदसे छह प्रकार है। सब असंयम मिलकर बारह (१२) होते हैं । कषायप्रत्यय सोलह कषाय और नौ नोकषायके भेदसे पच्चीस प्रकार है। यह कषाय प्रत्ययाका योग पच्चीस (२५) हुआ। योगप्रत्यय मन, वचन और काय योगके भेदसे तीन प्रकार है । मनोयोग चार प्रकार है- सत्यमनोयोग, मृषामनोयोग, सत्य-मृषामनोयोग और असत्य-मृषामनोयोग । वचनयोग भी सत्यवचनयोग, मृषावचनयोग, सत्य-मृषावचनयोग और असत्य-मृषावचनयोग भेदसे चार प्रकार है। काययोग औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र, और कार्मण काययोगके भेदसे सात प्रकार है। इनका सर्वयोग पन्द्रह (१५) होता है । सब प्रत्ययोंका योग सत्तावन (५७) हुआ। १ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि किं मोक्षमार्गः स्याद्वा नवेत्यन्यतरपक्षापरिग्रहः संशयः । स. सि. ८, १. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः किं स्याद्वा न वेति मतिद्वैतं संशयः । त. रा. ८, १, २८, किं वा भवेन्न घा जैनो धर्मो हिंसादिलक्षणः । इति यत्र मतिद्वैधं भवेत् सांशयिकं हि तत् । त. सा. ५, ५. २ अप्रती · सच्चमोस असच्चमोस ससच्चमोस सदसच्चमोसभेएण चउबिहो मणजोगो। वचिजोगो वि चउविहो सच्चमोस सच्चमोस ससच्चमोस सदसच्चमोसमेएण'; कप्रतौ सच्चमोस असच्चमोस सच्चमोस सच्चमोस असच्चमोस असच्चमोसमेएण चउब्विहो वि मण-वचिजोगो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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