SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९६] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, १२४. धुवाभावादो। ... मिच्छत्त-णqसयवेद-चउजादि-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघड़ण-आदाव-थावर-सुहुमअपज्जत्त-साहारणसरीराणमेगट्ठाणाणं वुच्चदे- उदयादो बंधो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिण्णा ति [विचारो] मिच्छत्त-चउजादि-थावर-सुहुम-अपजत्ताणं णत्थि, अक्कमेण बंधोदयवोच्छेददंसणादो। णउंसयवेदस्स पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, असंजदसम्मादिविम्हि उदयवोच्छेददसणादो। हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-आदाव-साहारणसरीराणं बंधवोच्छेदो चेव, उदयवोच्छेदो णस्थि, अभावस्स भावपुरंगमत्तदंसणादो। ण च एदासिं पयडीणं विग्गहगदीए उदओ अत्थि, अणुवलंभादो । मिच्छत्तस्स बंधो सोदएण, णउंसयवेद-चउजादि-थावर-सुहुमअपज्जत्ताणं सोदय-परोदएण, हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-आदाव-साहारणाणं परोदएण । मिच्छत्तस्स बंधो णिरंतरो । सेसाणं सांतरो, णियमाभावादो। पच्चया सुगमा । मिच्छत्तणउंसयवेद-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-अपज्जत्ताणं बंधो तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तो। चउजादि-आदाव-थावर-सुहुम-साहारणाणं तिरिक्खगइसंजुत्तो । मिच्छत्त-णqसयवेद-हुंडसंठाणअसंपत्तसेबट्टसंघडणाणं चउगइमिच्छाइट्ठी सामी। एइंदिय-आदाव-थावराणं तिगइमिच्छाइट्ठी होता है, क्योंकि, वहां ध्रुवबन्धका अभाव है। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, चार जातियां, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर, इन एकस्थान प्रकृति प्ररूपणा करते हैं- उदयसे बन्ध पूर्व या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है यह विचार मिथ्यात्व, चार जातियां, स्थावर, सूक्ष्म और अपर्याप्त प्रकृतियोंके नहीं है, क्योंकि, इनके बन्ध और उदयका व्युच्छेद एक साथ देखा जाता है। नपुंसकवेदका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उसका उदयव्युच्छेद देखा जाता है । हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, आताप और साधारणशरीरका केवल बन्धव्युच्छेद ही है, उदयव्युच्छेद नहीं है; क्योंकि, अभाव भावपूर्वक देखा जाता है। और इन प्रकृतियोंका विग्रहगतिमें उदय है नहीं, क्योंकि, वहां वह पाया नहीं जाता। मिथ्यात्वका बन्ध स्वोदयसेनपुंसकवेद, चार जातियां, स्थावर, सूक्ष्म और अपर्याप्तका स्वोदयपरोदयसे; तथा हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तमृपाटिकासंहनन, आताप और साधारणशरीरका परोदयसे बन्ध होता है। मिथ्यात्वका बन्ध निरन्तर होता है। शेष प्रकृतियोका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, उनके बन्धका नियम नहीं है । प्रत्यय सुगम हैं। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन और अपर्याप्तका बन्ध तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त होता है । चार जातियां, आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणका तिर्यग्गतिसंयुक्त बन्ध होता है। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान और असंप्राप्तसृपाटिकासंहननके चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि स्वामी है। एकेन्द्रिय, आताप और स्थावरके तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy