________________
सम्मत्तमग्गणाए बंधसा मित्तं
[ ३६३
अंग|वंग-णिरयगइ-देवगइपाओग्गाणुपुव्वी सुहुम-अपज्जत -साहारणसरीराणं बंधस्स तिरिक्खमसा सामी । एइंदियजादि - आदाव - थावराणं तिगइभिच्छाइट्ठी सामी, णेरइयाणमभावादो । अवसेसाणं पयडीणं चउगइमिच्छाइट्ठी सामी, तेसिं तब्बंधवि|हाभावादो ।
३, २७८. ]
बंधद्वाणं णत्थि, एक्कम्हि गुणट्ठाणे अद्धाणविरोहादो । बंधवोच्छेदो वि णत्थि, एत्थ उत्तासेसपयडीणं बंधुवलंभाद। । बज्झमाणपयडीसु धुवबंधीणमणादिओ धुवो बंधो। अवसेसाणं सादि-अद्भुवो ।
सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठीसु खइयसम्माइट्टीसु आभिणिबोहियणाणिभंगो ॥ २७८ ॥
जहा आभिणिबोहियणाणपरूवणा कदा तथा णिरवसेसा कायव्वा, विसेसाभावादो । णवरि खइयसम्माइट्ठिसंजदासंजदेसु उच्चागोदस्स सोदओ णिरंतरो बंधो, तिरिक्खेसु खइयसम्माइट्ठी संजदासंजदाणमणुवलंभादो । मणुसाउअं बंधमाणाणमित्थिवेदपच्चओ णत्थि, देवइस इत्थवेदखइय सम्माइट्ठीणमभावादो । एत्तिओ चैव विसेसो । अण्णा जदि अत्थि सो
वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, नरकगति व देवगति प्रायोग्यानुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर, इनके बन्धके तिर्यच व मनुष्य स्वामी हैं । एकेन्द्रिय जाति, आताप और स्थावरके तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि स्वामी हैं. क्योंकि, नारकियोंके इनका बन्ध नहीं होता । शेष प्रकृतियोंके बन्धके चारों गतियों के मिथ्यादृष्टि स्वामी हैं, क्योंकि, उनके इन प्रकृतियों के बन्धका कोई विरोध नहीं है ।
बन्धाध्वान नहीं है, क्योंकि, एक गुणस्थान में अध्वानका विरोध है । बन्धव्युच्छेद भी नहीं है, क्योंकि, यहां सूत्रोक्त सब प्रकृतियों का बन्ध पाया जाता है । बध्यमान प्रकृतियों में ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका अनादि व ध्रुव बन्ध होता है । शेष प्रकृतियों का सादि व अध्रुव बन्ध होता है ।
सम्यक्त्वमार्गणानुसार सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें आभिनिबोधिकज्ञानियों के समान प्ररूपणा है ॥ २७८ ॥
जिस प्रकार आभिनिवोधिकज्ञानी जीवोंकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार पूर्णरूप से यहां भी करना चाहिये, क्योंकि, उनसे यहां कोई भेद नहीं है । विशेष इतना है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतों में उच्चगोत्रका स्वोदय एवं निरन्तर वन्ध होता है, क्योंकि, तिर्येच क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में संयतासंयत जीव पाये नहीं जाते । मनुष्यायुको बांधनेवाले जीवोंके स्त्रीवेद प्रत्यय नहीं है, क्योंकि, देव व नारकियोंमें स्त्रीवेदी क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंका अभाव है । इतनी ही यहां विशेषता है । अन्य कोई यदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org