SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३, २७७.] भवियमग्गणाए बंधसामित्तं [ ३५९ अभवसिद्धिएसु पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय सादासादमिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय-चदुआउ-चदुगइ-पंचजादि-ओरालिय-वेउव्विय-तेजा-कम्मइयसरीर-छसंठाण-ओरालिय-वेउब्वियअंगोवंग-छसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-चत्तारिआणुपुव्वी-अगुरुवलहुव-उवघाद-परघाद-उस्सास-आदावुजोव-दोविहायगइ-तस-बादर-थावर-सुहुमपज्जत्त-अपज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग दुभगसुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिणणीचुच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २७६ ॥ . सुगमं । सव्वे एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २७७ ॥ एदस्स देसामासियसुत्तस्स अत्थपरूवणा कीरदे - एदासु पयडीसु एत्थ ण कासिं पि बंधोदयवोच्छेदो अस्थि, उवलंभमाणाणं वोच्छेदविरोहादो । पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय अभव्यसिद्धिक जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, चार आयु, चार गतियां, पांच जातियां, औदारिक, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक व वैक्रियिक अंगोपांग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, चार आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात,उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, बादर, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीच व ऊंच गोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २७६ ॥ यह सूत्र सुगम है। ये सभी बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २७७ ॥ इस देशामर्शक सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं- इन प्रकृतियोंमें यहां किन्हीं के भी बन्ध और उदयका व्युच्छेद नहीं है, क्योंकि, विद्यमान होनेसे उन दोनोंके व्युच्छेदका विरोध है। पांच शानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, सैजस व कार्मण शरीर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy