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________________ ३५०१ छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, २७२. णवरि मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीसु ओरालियमिस्सपञ्चओ अवणेयव्यो। मणुसगइदुगोरालियद्गवज्जरिसहसंघडणाणमोरालियदुगित्थि-णqसयवेदपच्चया अवणेयव्वा, देवेसु एदासिमभावादो । अपञ्चक्खाणचउक्कस्स दुगइसंजुत्तो बंधो । अवसेसाणं मणुसगइसंजुत्तो। अपञ्चक्खाणचउक्कस्स तिगइजीवा सामी । अवसेसाणं पयडीणं देवा सामी । बंधद्धाणं बंधवोच्छिपणहाणं च सुगमं । अपच्चक्खाणचउक्कस्स मिच्छाइट्ठिम्हि बंधो चउब्विहो । उवरि तिविहो, धुवाभावादो । अवसेसाणं सादि-अद्भुवो, अटुवबंधित्तादो । पच्चक्खाणावरणीयस्स बंधोदया समं वोच्छिज्जति, संजदासंजदम्मि तदुहयवोच्छेददंसणादो । बंधो सोदय-परोदओ, अदुवोदयत्तादो । णिरंतरो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । पच्चया सुगमा । णवरि मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीसु ओरालियमिस्सपच्चओ अवणेयव्यो, तिरिक्ख-मणुसमिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीसु अपज्जत्तकाले सुहलेस्साणमभावादो । असंजदेसु बंधो देव-मणुसगइसंजुत्तो, संजदासजदेसु देवगइसंजुत्तो । तिगइअसंजदगुणट्ठाणाणि, दुगइसंजदासजदा च सामी । बंधद्धाणं बंधवोच्छिण्णट्ठाणं च सुगमं । मिच्छाइडिम्हि बंधो चउब्विहो । विशेष इतना है कि मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में औदारिकमिश्र प्रत्ययको कम करना चाहिये। मनुष्यगतिद्विक, औदारिकाद्धक और वज्रभसंहननके औदारिकद्विक, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद प्रत्ययोंको कम करना चाहिये, क्योंकि, देवोंमें यहां इन प्रत्ययोंका अभाव है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका दो गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है। शेष प्रत्ययोंका मनुष्यगतिसे संयुक्त वन्ध होता है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन गतियोंके जीव स्वामी हैं । शेष प्रकृतियोंके देव स्वामी हैं। बन्धाध्वान और बन्धव्युच्छिन्नस्थान सुगम हैं। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है। ऊपर तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रुव बन्धका अभाव है। शेष प्रकृतियों का सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वे अध्रुवबन्धी हैं । प्रत्याख्यानावरणीयका बन्ध और उदय दोनों साथमें व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, संयतासंयत गुणस्थानमें उन दोनोंका ब्युच्छेद देखा जाता है। स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवोदयी प्रकृति है । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे उसके बन्धविश्रामका अभाव है। प्रत्यय सुगम हैं। विशेष इतना है कि मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें औदारिकमिश्र प्रत्यय कम करना चाहिये, क्योंकि, तिर्यंच और मनुष्य मिथ्यादृष्टि एवं सासादनसम्यग्दृष्टियों में अपर्याप्तकालमें शुभ लेश्या ओंका अभाव है । असंयतोंमें देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त बन्ध होता है । संयतासंयतोंमें देवगतिसे संयुक्त बन्ध होता है । तीन गतियोंके असंयत गुणस्थान और दो गतियों के संयतासंयत स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धविनष्टस्थान सुगम हैं । मिथ्याटाष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है । ऊपर तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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