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८]. छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, ५. णिरंतरो बंधो किं सांतरणिरंतरो, किं सपच्चओ किमपच्चओ, किं गइसंजुत्तो किमगइसंजुत्तो, कदिगदिया सामिणो असामिणो, किं वा बंधद्धाणं, किं चरिमसमए बंधो वोच्छिज्जदि किं पढमसमए किमपढमअचरिमसमए बंधो वोच्छिजदि, किं सादिगो बंधो किं अणादिओ, किं धुवो किमद्धवो त्ति, तेणेदाओ तेवीसपुच्छाओ पुव्विलपुच्छाए अंतब्भूदाओ त्ति दवाओ एत्थुवउज्जतीओ आरिसगाहाओ
बंधो बंधविही पुण सामित्तद्धाण पच्चयविही य । एदे पंचणिओगा मग्गणठाणेसु मग्गेज्जा' ॥ २ ॥ बंधोदय पुव्वं वा समं व णियएण कस्स व परेण । अण्णदरस्सुदर्पण व सांतरविगयंतरं का च ॥ ३ ॥ पच्चय-सामित्तविही संजुत्तद्धाणएण तह चेय। सामित्तं णेयव्वं पयडीणं ठाणमासेज्ज ॥ ४ ॥ बंधोदय पुव्वं वा समं व स-परोदए तदुभएण । सांतर णिरंतर वा चरिमेदर सादिआदीया ॥ ५॥
क्या सान्तर बन्ध होता है (७) क्या निरन्तर बन्ध होता है (८) या सान्तर निरन्तर बन्ध होता है (९) क्या सनिमित्तक वन्ध होता है (१०) या अनिमित्तक (११) क्या गतिसंयुक्त बन्ध होता है (१२) या गतिसंयोगसे रहित (१३) कितनी गतिवाले जीव स्वामी हैं (१४) और कितनी गतिवाले स्वामी नहीं है (१५) बन्धाध्वान कितना है अर्थात् बन्धकी सीमा किस गुणस्थान तक है (१६) क्या अन्तिम समयमें बन्धकी व्युच्छित्ति होती है (१७) क्या प्रथम समयमें बन्धकी व्युच्छित्ति होती है (१८) या बीचके समयमें (१९) बन्ध क्या सादि है (२०) या क्या अनादि (२१) क्या ध्रुव बन्ध होता है (२२) या अध्रुव (२३) ये तेईस प्रश्न पूर्वोक्त प्रश्नके अन्तर्गत हैं, ऐसा जानना चाहिये। यहां उपयुक्त आर्ष गाथायें
बन्ध, बन्धविधि, बन्धस्वामित्व, अध्वान अर्थात् बन्धसीमा और प्रत्ययविधि, ये पांच नियोग मार्गणास्थानों में खोजने योग्य हैं ॥२॥
बन्ध पूर्व में है, उदय पूर्वमें हैं, या दोनों साथ हैं, किस कर्मका बन्ध निजके उदयके साथ होता है, किसका परके साथ, और किसका अन्यतरके उदयके साथ, कौन प्रकृति सान्तरबन्धवाली है, और कौन निरन्तरवन्धवाली, प्रत्ययविधि, स्वामित्वविधि तथा गतिसंयुक्त बन्धाध्वानके साथ प्रकृतियों के स्थानका आश्रयकर स्वामित्व जानना चाहिये ॥३-४॥
बन्ध पूर्वमें, उदय पूर्वमें या दोनों साथ होते हैं, वह बन्ध स्वोदयसे परोदयसे या दोनोंके उदयसे होता है. उक्त बन्ध सान्तर है या निरन्तर, वह अन्तिम समयमें होता है या इतर समयमें, तथा वह सादि है या अनादि है ॥५॥
१ प्रतिषु — मग्गजो' इति पाठः ।
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