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________________ ३२४ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, २५८. पुरिसवेदपच्चएहि विणा चालीसपच्चया । देवगड - देवगइपाओग्गाणुपुव्वी वे उव्वियसरीर-वेउव्वियसरीरंगोवंगाणं वेउब्विय- वे उव्वियमिस्सपच्चया सव्वगुणट्ठाणपच्चएस सव्वत्थ अवणेदव्वा । ओरालियदुग-मणुसगइ-मणुसग पाओग्गाणुपुव्वीणं असंजदसम्मादिट्ठिम्हि चालीस पच्चया, वे उब्वियमिस्स ओरालिय-ओरालियमिस्स-कम्मइय- इत्थि - पुरिसवेदपच्चयाणमभावाद | वजीरसहसंघडणस्स सम्मामिच्छाइट्ठिम्हि चालीस पच्चया, ओरालियकायजोगित्थि-पुरिसवेदपच्चयाणमभावादो | असंजदसम्माइट्ठिम्हि चालीस पच्चया, ओरालिय-ओरालियमिस्स - वे उब्विय मिस्सकम्मइयकायजोगित्थि-पुरिसवेदपच्चयाणमभावादो । पंचणाणावरणीय छदंसणावरणीय असादावेदणीय- वारस कसाय- अरदि-सोग-भय-दुगुंछापंचिंदियजादि - तेजा -कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस- फास- अगुरुवलहुअ- उवघाद-परघाद- उस्सासतस - बादर-पज्जत- पत्तेयसरीर अथिर- असुह-अजस कित्तिणिमिण-पंचतराइयाणं मिच्छाइट्ठिम्हि चउगइसंजुत्तो बंधो। सासणे तिगइसंजुत्तो, णिरयगईए अभावादो । असंजदसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठीसु दुगइसंजुत्तो, णिरय-तिरिक्खगईणमभावादो । सादावेदणीय - पुरिसवेद-हस्स-रदिसमचउरससंठाण-पसत्थविहायगइ-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जस कित्तीणं मिच्छाइट्ठि-सासण errयोग, स्त्रीवेद और पुरुषवेद प्रत्ययोंके विना चालीस प्रत्यय हैं । देवगति, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीरांगोपांगके वैक्रियिक और वैक्रियेकमिश्न प्रत्ययोंको सब गुणस्थ नोके प्रत्ययोंमें सर्वत्र कम करना चाहिये । औदारिकहिक, मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में चालीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, वहां वैक्रियिकमिश्र, औदारिक, औदारिकःमिश्र, कार्मण काययोग, स्त्रीवेद और पुरुषवेद प्रत्ययका वहां अभाव है। वज्रर्षभसंहनन के सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में चालीस प्रत्यय हैं, क्योंकि औदारिककाययोग, स्त्रोवेद और पुरुषवेद प्रत्ययका वहां अभाव है। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उसके चालीस प्रत्यय हैं. क्योंकि, औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र, कार्मण काययोग स्त्रीवेद और पुरुषवेद प्रत्ययका वहां अभाव है । पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, आसाता वेदनीय, बारह कषाय, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति तेजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छूवास, त्रस, वादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर, अशुभ, अयशकार्ति, निर्माण और पांच अन्तरायका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है । सासादन गुणस्थान में तीन गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, वहां नरकगतिका अभाव है। असंयतनम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानों में दो गतियोंसे संयुक्तबन्ध होता है क्योंकि, वहां नरकगति और तिर्यग्गनिका अभाव है । साना वेदनीय, पुरुषवेद, हास्य, रति, समच उरलसंस्थान, प्रशस्त विहाय, गति, स्थिर, शुभ, सुभग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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