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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, ४. विणासेण विसिट्ठदव्वस्स पुव्विल्लकाले वि उवलंभादो । दव्वट्टियणयम्मि संताणं पज्जायाणं कधमभावो ? को भणदि तेसिं तत्थाभावो त्ति, किंतु ते तत्थ अप्पहाणा अविवक्खिया अणप्पिया इदि तेसिं दव्वत्तमेव ण तत्थ पज्जायत्तं । कधमत्थियवसेण अदव्वाणं पज्जयाणं दव्वत्तं ? ण, दव्वदो एयंतेण तेसिं पुधभूदाणमणुवलंभादो, दव्वसहावाणं चेवुवलंभा । जदि एवं तो भावस्स दुचरिमादिसु समएसु चरिमसमए इव अभावववहारो किण्ण कीरदे ? ण एस दोसो, दुचरिमादीणं चरिमसमयस्सेव अभावेण सह पच्चासत्तीए अभावाद।। दवट्ठियस्स कधमभावबवहारो ? ण एस दोसो, 'यदस्ति न तद् द्वयमतिलंध्य वर्त्तत' इति दो वि णए अविलंबिऊण ट्ठिदणेगमणयस्स भावाभावव्यवहारविरोहाभावादो । अनुत्पादः असत्वं, अनुच्छेदो
कालमें भी पाया जाता है।
शंका-द्रव्यार्थिक नयमें विद्यमान पर्यायोंका अभाव कैसे होता है ?
समाधान-यह कौन कहता है कि उनका वहां अभाव होता है, किन्तु वे वहां अप्रधान, अविवक्षित अथवा अनर्पित हैं, इसलिये उनके द्रव्यपना ही है, पर्यायपना वहां नहीं है।
शंका-द्रव्यार्थिक नयके वशसे द्रव्यसे भिन्न पर्यायोंके द्रव्यत्व कैसे सम्भव है ?
समाधान- यह शंका ठीक नहीं, क्योंकि, पर्याय द्रव्यसे सर्वथा भिन्न नहीं पायी जाती, किन्तु द्रव्यस्वरूप ही वे उपलब्ध होती है ।
शंका-यदि ऐसा है तो फिर पदार्थके अन्तिम समयके समान द्विचरमादि समयों में भी अभावका व्यवहार क्यों नहीं किया जाता ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, द्विचरमादिक समयोंके अन्तिम समयके समान अभावके साथ प्रत्यासत्ति नहीं है।
शंका-द्रव्यार्थिककी अपेक्षा पर्यायोंमें अभावका व्यवहार कैसे होता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, 'जो है वह दोनोंका अतिक्रमण कर नहीं रहता' इस लिये दोनों नयोंका आश्रयकर स्थित नैगमनयके भाव व अभाव रूप व्यवहारमें कोई विरोध नहीं है।
अनुत्पादका अर्थ असत्व और अनुच्छेदका अर्थ विनाश है। अनुत्पाद ही अनुच्छेद
१ मतिषु ' तथाभावो ' इति पाठः ।
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