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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
संजदासंजदेसु पंचणाणावरणीय - छदंसणावरणीय-सादासादअट्ठकसाय पुरिसवेद-हस्स-रदि-सोग-भय-दुगुंछ- देवाउ-देवगइ-पंचिंदियजादि वे उब्विय-तेजा-कम्मइयसरीर - समचउरससंठाण - वे उव्वियसरीरअंगोवंग-वण्ण-गंध रस- फास- देवगड़पाओग्गाणुपुत्री- अगुरुवलहुव-उवघाद-परघादउस्सास-पसत्यविहाय गइ-तस बादर - पज्जत्त - पत्ते यसरीरथिराथिर - सुहासुह-सुभग-सुस्सर - आदेज्ज - जसकित्ति-अजसकित्तिणिमिण- तित्थयरुच्चा गोद - पंचतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २४३ ॥
३१० ]
सुगमं ।
संजदासंजदा बंधा । एदे बंधा अबंधा णत्थि ॥ २४४ ॥
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[ ३, २४३.
उदयादो पुव्वं पच्छा वा बंधो वोच्छिण्णो त्ति एत्थ विचारे णत्थि, बंधवोच्छेदाभावादो । पंचणाणावरणीय- चउदंसणावरणीय- पंचिंदियजादि तेजा - कम्मइयसरीर- वण्णचउक्कअगुरुअलहुअचउक्क-थिराथिर - सुहासुह- सुभगादेज्ज-जसकित्तिणिमिण-पंचंतराइयाणं सोदओ
यह सूत्र सुगम है ।
संयतासंयत बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २४४ ॥
संयतासंयतों में पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, आठ कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, शोक, भय, जुगुप्सा, देवायु, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, तीर्थकर, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २४३ ॥
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इन प्रकृतियोंका बन्ध उदयसे पूर्व में या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, यह विचार यहां नहीं है, क्योंकि, उनके बन्धव्युच्छेदका अभाव है। पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्णादिक चार, अगुरुलघु आदिक चार, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण और पांच अन्तरायका स्वोदय
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