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________________ ३, २३८. ] संजममग्गणाए बंधसामित्तं सुगमं । पमत्तसंजदा अप्पमत्तसंजदा बंधा। अप्पमत्तसंजदद्वार संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २३६ ॥ ॥ २३७ ॥ उदयादो बंधो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिण्णो त्ति विचारो णत्थि, संजदेसु देवा अस्स उदयाभावादो। परोदओ बंधो, बंधोदयाणमक्कमवुत्तिविरोहादो । णिरंतरो, अंतोमुहुत्तेण विणा बंधुवरमाभावाद । पच्चया सुगमा, ओघपच्चए हिंतो विसेसाभावाद । णवरि आहारदुगित्थिणवुंसयवेदपच्चया णत्थि । देवगइसंजुत्तो, मणुसा सामीओ, अवगयबंधद्धाणो, अप्पमत्तद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण वोच्छिण्णबंधो । सादि-अद्भुवो । आहारसरीर-आहारसरीरंगोवंगणामाणं को बंधो को अबंधो ? [ ३०७ सुगमं । अप्पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २३८ ॥ यह सूत्र सुगम है । प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत बन्धक हैं । अप्रमत्तसंयतकालका संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २३६ ॥ उदयसे बन्ध पूर्व में या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, यह विचार यहां नहीं है, क्योंकि, संयत जीवोंमें देवायुके उदयका अभाव है । परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, उसके बन्ध और उदयके एक साथ रहने का विरोध है । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, अन्तर्मुहूर्त के विना उसके बन्धविश्रामका अभाव है । प्रत्यय सुगम हैं, क्योंकि, ओघप्रत्ययोंसे कोई विशेषता नहीं है । विशेष इतना है कि आहारकद्विक, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद प्रत्यय नहीं हैं। देवगति संयुक्त बन्ध होता है । मनुष्य स्वामी हैं । बन्धाध्वान सूत्र से जाना जाता है । अप्रमत्तकाल के संख्यात वहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । सादि व अध्रुव बन्ध होता है । Jain Education International आहारकशरीर और आहारकशरीरांगोपांग नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २३७ ॥ यह सूत्र सुगम है । अप्रमत्तसंयत बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २३८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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