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________________ ३, १९४.] कसायमग्गणाए बंधसामित्तं [ २७५ ओघभंगो । सो वि चिंतिय एत्थ वत्तव्यो । पुरिसवेदे ओघं ॥ १९२ ॥ एसो पुरिसवेदणिदेसो जेण देसामासियो तेग पुरिसवेददंडय-माणदंडय-लोहदंडयाणं गहणं । जहा एदेसि दंडयाणमाघम्मि परूवणा कदा तहा एत्थ वि कायव्वा । णवरि पच्चयविसेसो जाणिय वत्तव्यो । हस्स-रदि जाव तित्थयरे त्ति ओघं ॥ १९३ ॥ हस्स-रदिसुत्तमादि कादूण जाव तित्थयरसुतं ति ताव एदेसिं' सुत्ताणमोघपरूवणमवहारिय परूवेदव्वं । माणकसाईसु पंचगागावरणीय-च उदसणावरणीय-सादावेदणीयतिण्णिसंजलण-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १९४ ॥ सुगमं । भी विचार कर यहां कहना चाहिये । पुरुषवेदकी प्ररूपणा ओषके समान है ॥ १९२ ॥ यह पुरुषवेद पदका निर्देश चूंकि देशामर्शक है, अतः इससे पुरुषवेददण्डक, मानदण्डक और लोभदण्डकका ग्रहण करना चाहिये । जिस प्रकार इन दण्डकोंकी ओघमें प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार यहां भी करना चाहिये । विशेष इतना है कि प्रत्ययभेद जानकर कहना चाहिये। हास्य व रतिसे लेकर तीर्थकर प्रकृति तक ओघके समान प्ररूपणा है ॥ १९३ ॥ हास्य-रति सूत्रको आदि करके तीर्थकर सूत्र तक इन सूत्रों की ओघप्ररूपणाका निश्चय कर प्ररूपणा करना चाहिये। मानकषायी जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, तीन संज्वलन, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १९४ ॥ यह सूत्र सुगम है। १ प्रतिषु ' एदासिं' इति पाठः । २ अ-आप्रत्योः जाणिदरो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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