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२६६] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, १८२. अजोगिचरिमसमयम्मि बंधोदयवोच्छेददंसणादो । सोदय-परोदओ बंधो, परावत्तण्णुदयत्तादो। णिरंतरो बंधो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो। पच्चया सुगम, ओघम्मि परूविदत्तादो । अगइसंजुत्तो बंधो, अवगदवेदेसु गइचउक्कस्स बंधाभावादो। मणुसा सामी, अण्णत्थ अवगयवेदाणमभावादो । बंधद्धाणं बंधविणठ्ठाणं च सुगमं । सादि-अद्धवो बंधो, अद्धवबंधित्तादो।
कोधसंजलणस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १८२ ॥ सुगमं ।
अणियट्टी उवसमा खवा बंधा । अणियट्टिवादरद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥१८३॥
___ एदस्सत्थो वुच्चदे- बंधोदया समं वोच्छिज्जंति, बंधे वोच्छिण्णे संते उदयाणुवलंभादो । सोदय-परोदओ बंधो, उभयहा वि बंधविरोहाभावादो । णिरंतरो, धुवबंधित्तादो ।
उसके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है । स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, परिवर्तित होकर उसके प्रतिपक्षभूत असाता वेदनीयका उदय पाया जाता है । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है । प्रत्यय सुगम है, क्योंकि, ओघमें उनको प्ररूपणा की जाचुकी है । अगतिसंयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, अपगतवेदियों में चारों गतियोंके बन्धका अभाव है। मनुष्य स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियोंमें अपगतवेदियोंका अभाव है। बन्धाध्वान और बन्धविनष्टस्थान सुगम हैं । सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी प्रकृति है।
संज्वलनक्रोधका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १८२ ॥ यह सूत्र सुगम है।
अनिवृत्तिकरणगुणस्थानवर्ती उपशमक व क्षपक बन्धक हैं । बादर अनिवृत्तिकरणकालके संख्यात बहु भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १८३ ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- संज्वलनक्रोधका बन्ध और उदय दोनों एक साथ व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, बन्धके व्युच्छिन्न होनेपर फिर उदय पाया नहीं जाता। स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, दोनों प्रकारसे भी बन्ध होने का विरोध नहीं है। निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वह ध्रुववन्धी है । अगतिसंयुक्त वन्ध होता है, क्योंकि,
१ काप्रतौ ' परावत्तणुदयचादो' इति पाठः ।
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