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२६.] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १७७. पयडिबंधाभावादो। पच्चया सुगमा, बहुसो परविदत्तादो । णवरि देवगइ-वेउब्वियदुगाणं वेउब्विय-वेउव्वियमिस्स-ओरालियमिस्स-कम्मइयपच्चया पुरिस-णवंसयवेदेहि सह अवणेदव्वा । सेसं सुगमं ।
देवगइ-वेउव्वियदुगाणि सव्वत्थ देवगइसंजुत्तं बझंति । णवरि वेउव्वियदुर्ग मिच्छाइट्ठी देव-णिरयगइसंजुत्तं बंधंति । समचउरससंठाण-पसत्थविहायगइ-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सरआदेज्जणामाओ मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठिणो तिगइसंजुत्तं, णिरयगईए सह बंधाभावादो । सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो देव-मणुसगइसंजुत्तं । सेसा देवगइसंजुत्तं बंधति । अवसेसाओ पयडीओ मिच्छाइट्ठी' चउगइसंजुत्त, सासणो तिगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छादिट्ठिअसंजदसम्मादिट्ठिणो देवगइ-मणुसगइसंजुत्तमुवरिमा देवगइसंजुत्तं बंधंति ।
देवगइ-वेउव्वियदुगाणं तिरिक्ख-मणुसमिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठिअसंजदसम्माइट्ठि-संजदासजदा सामी । उवरिममणुसा चेव, अण्णत्थ तेसिमभावादो । अवसेसाणं पयडीणं तिगइमिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिहि-असंजदसम्मादिट्ठी दुगइसंजदा
वहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है।
प्रत्यय सुगम हैं, क्योंकि, उनकी प्ररूपणा बहुत वार की जा चुकी है । विशेषता यह है कि देवगति और वैक्रियिकद्विकके वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, औदारिकमिश्र और कार्मण प्रत्ययोंको पुरुष और नपुंसक वेदोंके साथ कम करना चाहिये । शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है।
देवगतिद्विक और वैक्रियिकद्विक सर्वत्र देवगतिसे संयुक्त बंधते हैं। विशेषता इतनी है कि वैक्रियिकद्विकको मिथ्यादृष्टि स्त्रीवेदी जीव देव व नरक गतिसे संयुक्त बांधते हैं। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर और आदेय नामकर्मीको मिथ्यादृष्टि वसासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, नरकगतिके साथ इनके बन्धका अभाव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त बांधते हैं । शेष गुणस्थानवर्ती देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं। शेष प्रकृतियोंको मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवगति एवं मनुष्यगतिसे संयुक्त, तथा उपरिम गुणस्थानवी देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं।
देवगतिद्विक और वैक्रियिकद्विकके तिर्यंच व मनुष्य मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत स्वामी हैं। उपरिम गुणस्थानवर्ती मनुष्य ही स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियोंमें उन गुणस्थानोंका अभाव है। शेष प्रकृतियोंके तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि; दो गतियोंके
१ प्रतिषु 'मिच्छाइहि ' इति पाठः।
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