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२५.] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, १७६. अवसेसतिण्णिपयडीओ मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठिणो तिरिक्ख मणुसगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो मणुसगइसंजुत्तं बंधंति ।
___ अपच्चक्खाणावरणच उक्कस्स तिगइचदुगुणवाणिणो सामी। अवसेसाणं पयडीणं तिगइमिच्छादिट्टि सासणसम्मादिट्ठिणो देवगइसम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो च सामी। बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं च सुगमं । अपच्चक्खाणच उक्कस्स मिच्छाइट्टिम्हि चउबिहो बंधो। अण्णत्थ तिविहो । अवसेसाणं पयडीणं सादि-अद्ववो ।
पच्चक्खाणावरणीयमोघं ॥ १७६॥ एत्थ ओघपरूवणं किंचिविसेसाणुविद्धं संभरिय वत्तव्यं । हस्स-रदि जाव तित्थयरेत्ति ओघं ॥ १७७ ॥
(ओघादो एदेसु सुत्तेसु अवट्ठिदथोवभेयसंदरिसणटुं मंदबुद्धिसिस्साणुग्गहटुं च पुणरवि परूवेमो- हस्स-रद्र-भय-दुगुंछाणं बंधोदया समं वोच्छिज्जंति, अपुवकरणचरिमसमए
बांधते हैं। शेष तीन प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गति एवं मनुष्यगतिसे संयुक्त, तथा सम्याग्मिथ्यादृष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं।
__ अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन गतियोंके चार गुणस्थानवर्ती स्त्रीवेदी जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंके तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यम्दृष्टि तथा देवगतिके सम्यग्मिथ्यादृष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। बन्धाध्वान और बन्धविनष्टस्थान सुगम है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका मिथ्या दृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका और अन्य गुणस्थानोंमें तीन प्रकारका बन्ध होता है। शेष प्रकृतियोंका सादि व अध्रुव बन्ध होता है।
प्रत्याख्यानावरणीयकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १७६ ॥ यहां कुछ विशेषतासे सम्बद्ध ओघप्ररूपणाको स्मरणकर कहना चाहिये । हास्य व रतिसे लेकर तीर्थकर प्रकृति तक ओधके समान प्ररूपणा है ॥ १७७॥
ओघकी अपेक्षा इन सूत्रोंमें अवस्थित कुछ थोडीसी विशेषताको दिखलाने तथा मन्दबुद्धि शिष्यके अनुग्रहके लिये फिर भी प्ररूपणा करते हैं- हास्य, रति, भय और जुगुप्साका बन्ध व उदय दोनों साथमें व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, अपूर्वकरणके अन्तिम
१ अप्रतौ पच्चक्खाणावरणी ओघं ' इति पाठः।
२ प्रतिषु · देवेसु ' इति पाठः ।
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