________________
२३२]
छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, १५९. _____ कम्मइयकायजोगीसु पंचणाणावरणीय-छदंसणावरणीय-असादा. वेदणीय-बारसकसाय-पुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछामणुसगइ-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा--कम्मइयसरीर--समचउरससंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फासमणुसगइपाओग्गाणुपुवी-अगुरुवलहुव-उवघाद-परघादुस्सास-पसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर--सुहासुह-सुभग-- सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिणुच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १५९ ॥
सुगम ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १६० ॥
एदस्सत्थो वुच्चदे- एत्थ बंधो उदओ वा पुव्वं वोच्छिण्णो त्ति णत्थि विचारो, एत्थ ओरालियदुग-समचउरससंठाण-वज्जरिसहसंघडण-उवघाद-परघादुस्सास-पसत्थविहायगइ
__ कार्मणकाययोगियोंमें पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, असातावेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन, . वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १५९॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १६० ॥
इसका अर्थ कहते हैं- यहां बन्ध या उदय पूर्वमें व्युच्छिन्न होता है, यह विचार नहीं है, क्योंकि, यहां औदारिकद्विक, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षभसंहनन, उपघात,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org