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________________ षट्खंडागमकी प्रस्तावना पृष्ठ क्रम नं. क्रम नं. विषय विषय भव्यमार्गणा | १९१ सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वका १७९ भव्य जीवों में ओघके समान विचार ३७५ बन्धवामित्वकी प्ररूपणा ३५८ | १९२ असातावेदनीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार ३७६ १८० अभव्य जीवों में पांच ज्ञानायरणीय आदिके बन्ध १९३ अप्रत्याख्यानावरणीयकी स्वामित्वका विचार ३५९ अवधिशानियोंके समान प्ररूपणा सम्यक्त्वमार्गणा १९४ उक्त जीवोंमें आयुके बन्धका १८१ सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्य अभाव ३७७ ग्दृष्टि जीवोंमें आभिनिवाधिक १९५ प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके बन्धशानियोंके समान बन्ध स्वामित्वका विचार स्वामित्वकी प्ररूपणा. ३६३ १९६ पुरुषवेद और संज्वलनक्रोधके १८२ सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वमें बन्धस्वामित्वका विचार कुछ विशेषता १९७ संज्वलन मान और मायाके १८३ वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें पांच बन्धस्वामित्वका विचार ३७८ ज्ञानावरणीय आदिके बन्ध- १९८ संज्वलनलोभके बन्धस्वामित्वका विचार स्वामित्वका विचार १८४ असातावेदनीय आदिके बन्धः १९९ हास्य, रति, भय और स्वामित्वका विचार जुगुप्साके बन्धस्वामित्वका विचार ३७९ १८५ अप्रत्याख्यानवरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार २०० देवगति आदिके बन्ध१८६ प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके बन्ध स्वामित्वका विचार स्वामित्वका विचार । २०१ आहारकशरीर और आहारक१८७ देवायुके बन्धस्वामित्वका शरीरांगोपांगके बन्धस्वामित्व का विचार विचार २०२ सासादनसम्यग्दृष्टियोंकी मति१८८ आहारकशरीर और आहारकशरीरांगोपांगके बन्धस्वामित्वका ज्ञानियों के समान प्ररूपणा विचार ३७२ २०३ सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंकी असं. १८२ उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें पांच यतोंके समान प्ररूपणा ज्ञानावरणीय आदिके वन्ध- | २०४ मिथ्यादृष्टियोंकी अभव्य जीवोंके स्वामित्वका विचार , समान प्ररूपणा १९० निद्रा और प्रचलाके बन्ध- | २०५ संज्ञी जीवोंमें ओघके समान खामित्वका विचार ३७४ । बन्धस्वामित्वकी प्ररूपणा ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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