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३, १५४.] जोगमगणाए बंधसामित्तं
___ [२१९ सासणसम्मादिट्ठिणो तिरिक्ख मणुसगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो मणुसगइसंजुत्तं बंधति ।
देव-णेरड्या सामी। बंधद्धाणं सुगमं । बंधविणासो णात्थ । पंचणाणावरणीयछदसणावरणीय-बारसकसाय-भय-दुगुंछा-तेजा-कम्मइय-वण्णचउक्क-अगुरुअलहुअ-उवघादणिमिण-पंचतराइयाणं मिच्छाइट्ठिम्हि चउबिहो बंधो । अण्णत्थ तिविहो, धुवबंधित्ताभावादो। सेससव्वपयडीओ सव्वत्थ सादि-अद्धवाओ ।
थीणगिद्धित्तिय-अणंताणुबंधिचउक्क-इत्थिवेद-तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-चउसंठाणचउसंघडण-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोव अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्जणीचागोदाणि बेठ्ठाणियपयडीओ । एदासु अणंताणुबंधिचउक्कस्स बंधोदया समं वोच्छिण्णा, सासणम्मि तदुभयाभावंदंसणादो । इत्थिवेद अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्जणीचागोदाणं पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु बंधोदयवोच्छेददंसणादो । अवसेसाणं ऐसा परिक्खा णत्थि, उदयाभावादो ।
सब प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गति एवं मनुष्यगतिसे संयुक्त, तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं ।
देव और नारकी स्वामी हैं । बन्धाध्वान सुगम है । बन्धविनाश है नहीं। पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस व कार्मण शरीर, वर्णादिक चार, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पांच अन्तरायका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है। अन्य गुणस्थानोंमें उनका तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, यहां इनके ध्रुव बन्धका अभाव है। शेष सब प्रकृतियां सर्वत्र सादि व अध्रुव बन्धवाली हैं।
स्त्यानगृद्धित्रय, अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, ये द्विस्थानिक प्रकृतियां हैं। इनमें अनन्तानुबन्धिचतुष्कका बन्ध और उदय दोनों साथमें व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, सासादन गुणस्थानमें उन दोनोंका अभाव देखा जाता है। स्त्रीवेद, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्रमशः इनके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है। शेष प्रकृतियोंके यह परीक्षा नहीं है, क्योंकि, उनका उदयाभाव है।
१ प्रतिषु तदुभयभाव.' इति पाठः ।
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