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२१८] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १५४. अंगोवंग-तसणामाण मिच्छाइट्ठिम्हि सांतर-णिरंतरो । कथं णिरंतरो ? ण, णेरइएसु सणक्कुमारादिदेवेसु च णिरंतरबंधुवलंभादो । सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु णिरंतरो, पडिवक्खपयडिबंधाभावादो। मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवीण मिच्छाइट्ठिसासणसम्मादिट्ठीसु सांतर-णिरंतरो । कधं णिरंतरो ? ण, आणदादिदेवेसु णिरंतरवंधुवलंभादो । सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु णिरंतरो, पडिवक्खपयडिबंधाभावादो।
मिच्छाइट्ठी एदाओ पयडीओ तेदालीसपच्चएहि, सासणो अद्वतीसपच्चएहि, सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्टिणो चोत्तीसपच्चएहि बंधति, मूलोघपच्चएसु बारसजोगपच्चयाभावादो । सेसं सुगमं ।
मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-उच्चागोदाणि मिच्छाइटि-सासणसम्माइटिसम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो मणुसगइसंजुतं । अवसेससवपयडीओ मिच्छाइटि
जाति, औदारिकशरीरांगोपांग और त्रस नामकर्मका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें सान्तरनिरन्तर बन्ध होता है।
शंका-निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि नारकियों और सनत्कुमारादि देवों में उनका निरन्तर बन्ध पाया जाता है।
सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में निरन्तर बन्ध पाया जाता है, क्योंकि, यहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है। मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है।
शंका-निरन्तर बन्ध कैसे होता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि आनतादि देवोंमें उनका निरन्तर बन्ध देखा जाता है।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, यहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है।
मिथ्यादृष्टि इन प्रकृतियोंको तेतालीस प्रत्ययोसे, सासादनसम्यग्दृष्टि अड़तीस प्रत्ययोंसे, तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि चौतीस प्रत्ययोंसे बांधते हैं; क्योंकि, मूलोघ प्रत्ययोंमें बारह योग प्रत्ययोंका यहां अभाव है। शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है।
मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रको मिथ्यादृष्टि, सासादन- . सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृाष्ट्र और असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं । शेष
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