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३, १५१.] जोगमग्गणाए बंधसामित्तं
[२१३ बंधाभावादो । मिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु जहाकमेण तेदालीस-अट्ठत्तीसबत्तीसपच्चया । सजोगिम्हि एक्को चेव ओरालियमिस्सकायजोगपच्चओ । सेसं सुगमं । मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठिणो दुगइसंजुत्तं, असंजदसम्मादिट्ठिणो देवगइसंजुत्तं, सजोगिजिणा अगइसंजुत्तं बंधंति । तिरिक्ख-मणुसगइमिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठि-असंजदसम्मादिविणो मणुसगइसजोगिजिणा सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं च सुगमं । सादावेदणीयस्स बंधो सव्वत्थ सादि-अद्भुवो, अद्धवबंधित्तादो ।
मिच्छत्त-णउंसयवेद-तिरिक्खाउ-मणुसाउ-चदुजादि हुंडसंठाणअसंपत्तसेवट्टसंघडण-आदाव-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीरणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १५० ॥
सुगमं । मिच्छाइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १५१ ॥ एदस्स अत्यो वुच्चदे- बंधोदयाणमेत्थ वोच्छेदो णस्थि, उवलंभादो । अधवा,
बन्ध होता है, क्योंकि, यहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है । मिथ्याष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें यथाक्रमसे तेतालीस, अड़तीस और बत्तीस प्रत्यय होते हैं । सयोगकेवली गुणस्थानमें एक ही औदारिकमिश्रकाययोग प्रत्यय होता है। शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है। मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि दो गतियों से संयुक्त, असंयतसम्यग्दृष्टि देवगतिसे संयुक्त, और सयोगी जिन अगतिसंयुक्त बांधते हैं । तिर्यगति व मनुष्यगतिके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि; तथा मनुष्यगतिके सयोगी जिन स्वामी हैं। बन्धाध्वान और बन्धविनष्ट स्थान सुगम हैं। साता बेदनीयका बन्ध सर्वत्र सादि व अध्रुव होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी है।
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, तिर्यगायु, मनुष्यायु, चार जातियां, हुंडसंस्थान, असंप्राप्तमृपाटिकासंहनन, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १५० ॥
यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक है, शेष अबन्धक हैं ॥ १५१ ॥ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- बन्ध और उदयका यहां व्युच्छेद नहीं हैं, क्योंकि,
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