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________________ ३, १३७.] पुढविकाइयादिसु बंधसामित्त पंचणाणावरणीय- चउदंसणावरणीय-मिच्छत्त-णवुसयवेद--तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइएइंदियजादि-तेजा--कम्मइयसरीर-वण्णचउक्क-अगुरुवलहुव--थावर-थिराथिर-सुहासुह-दुभगअणादेज्ज-णिमिण-गीचागोद-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, अत्थगईए धुवोदयत्तादो । इत्थिपुरिसवेद-मणुसाउ-मणुसगइ-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरािंदिय-पंचिंदियजादि-पंचसंठाण--ओरालियसरीरअंगोवंग-छसंघडण मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-आदाव-दोविहायगइ-तस-सुभग-सुस्सर दुस्सरआदेज्जुच्चागोदाणं परोदओ बंधो। पंचदंसणावरणीय-सादासाद-सोलसकसाय-छण्णोकसायहुंडसंठाण-ओरालियसरीर-तिरिक्खाणुपुब्बी-उवघाद-परघादुस्सासुज्जोव-बादर--सुहुम--पज्जत्तापज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-जसकित्ति-अजसकित्तीणं सोदय-परोदओ बंधो । पंचणाणावरणीय-मिच्छत्त-सोलसकसाय-भय-दुगुंछा-तिरिक्ख-मणुसाउ-ओरालिय-तेजाकम्मइयसरीर-वण्णचउक्क-अगुरुवलहुव-उवघाद-णिमिण-पंचंतराइयाणं णिरंतरो बंधो । सादासादसत्तणोकसाय--मणुस्सगइ--एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय-पंचिंदियजादि-छसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-छसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वी-आदावुज्जोव--दोविहायगदि-तस-थावरसुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-दुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, एकेन्द्रिय जाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्णादिक चार, अगुरुलघु, स्थावर, स्थिर, आस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तरायका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, अर्थापत्तिसे ये प्रकृतियां ध्रुवोदयी हैं । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यायु, मनुष्यगति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, पांच संस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, छह संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, दो विहायोगतियां, त्रस सुभग, सुस्वर दुस्वर, आदेय और उच्चगोत्र, इनका परोदय बन्ध होता है। पांच दर्शनावरणीय साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय, छह नोकषाय, हुंडसंस्थान, औदारिकशरीर, तिर्यगानुपूर्वी, उपघात, परघात, उच्छ्वास, उद्योत, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, यशकीर्ति और अयशकीर्तिका स्वोदयपरोदय बन्ध होता है। पांच ज्ञानावरणीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तिर्यगायु, मनुष्यायु, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, वर्णादिक चार, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पांच अन्तरायका निरन्तर बन्ध होता है। साता व असाता वेदनीय, सात नोकषाय, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, छह संस्थान, दारिकशरीरांगोपांग, छह संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति और उच्चगोत्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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