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________________ विषय-सूची क्रम नं. विषय पृष्ठ क्रम नं. विषय १०१ आहारक व आहारकमिथ काय ११४ हास्य व रतिसे लेकर तीर्थकर योगियों में पांच ज्ञानावरणीय प्रकृति तक ओघके समान आदिके बन्धस्वामित्वकाविचार २२९ प्ररूपणा २५४ १०२ कार्मणकाययोगियों में पांच |११५ अपगतवेदियों में पांच ज्ञानाज्ञानावरणीय आदिके बन्ध वरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार स्वामित्वका विचार २६४ १०३ निद्रानिद्रा आदिके बन्ध ११६ सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वका स्वामित्वका विचार विचार २६५ १०४ सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वका ११७ संज्वलनक्रोधके बन्धस्वामित्वका विचार विचार २६६ १०५ मिथ्यात्व आदिके वन्ध- ११८ संज्वलन मान और मायाके स्वामित्वका विचार बन्धस्वामित्वका विचार २६७ १०६ देवगति आदिके बन्ध- ११९ संज्वलनलोभके बन्धस्वामित्वका स्वामित्वका विचार विचार २६८ वेदमार्गणा कषायमार्गणा १०७ स्त्री, पुरुप और नपुंसकवेदियोंमें | १२० क्रोधकषायी जीवों में पांच ज्ञानापांच ज्ञानावरणीय आदिके वरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका बन्धस्वामित्वका विचार विचार २६९ १०८ निद्रानिद्रा आदि द्विस्थानिक १२१ द्विस्थानिक प्रकृतियोंकी ओघके प्रकृतियोंके बन्धस्वामित्वकी समान प्ररूपणा २७२ ओघके समान प्ररूपणा १२२ निद्रासे लेकर प्रत्याख्यानावरण१०९ निद्रा और प्रचलाकी ओघके चतुष्क तक ओघके समान प्ररूपणा २७४ समान प्ररूपणा २४८ १२३ पुरुषवेदादिकी ओघके समान ११० असातावेदनीयकी ओघके प्ररूपणा २७५ समान प्ररूपणा २४९ १२४ हास्य व रतिसे लेकर तीर्थकर १११ मिथ्यात्व आदिक एकस्थानिक प्रकृति तक ओघके समान प्रकृतियोंकी ओघके समान प्ररूपणा प्ररूपणा " | १२५ मानकपायी जीवों में पांच ११२ अप्रत्याख्यानावरणीयकी ओघके ज्ञानावरणीय आदिके बन्ध. समान प्ररूपणा २५१ स्वामित्वका विचार ११३ प्रत्याख्यानावरणीयकी ओधके १२६ द्विस्थानिक आदि प्रकृतियोंकी समान प्ररूपणा ओघके समान प्ररूपणा २७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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