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________________ १८..] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, ११३. उवरि परोदएण, जसकित्तीए चेव तत्थोदयदंसणादो । एदासिं छण्हं पयडीणं सांतरो बंधो, दो-तिण्णिसमयादिकालपडिबद्धबंधणियमाभावादो। पच्चया सुगमा । एदाओ छप्पयडीओ मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणो तिगइसंजुत्तं, सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी दुगइसंजुत्तं, उवरिमा देवगइसंजुत्तं बंधंति । उतरि ओघभंगो । मिच्छत्त-णqसयवेद-णिरयाउ-णिरयगइ-एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदियजादि-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-णिरयाणुपुवीआदाव-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीरणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ११३॥ सुगमं । मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ११४॥ 'एदे बंधा ' त्ति णिद्देसो अणत्थओ, अवगदट्ठपरूवणादो। ण एस दोसो, बन्ध होता है, क्योंकि, वहां यशकीर्तिका ही उदय देखा जाता है। इन छह प्रकृतियोंका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, दो-तीन समयादि रूप कालसे सम्बद्ध इनके बन्धके नियमका अभाव है। प्रत्यय सुगम हैं । इन छह प्रकृतियोंको मिथ्यादृष्टि चार गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त, सम्यग्मिथ्यादृष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टि दो गतियोंसे संयुक्त, तथा उपरिम जीव देवगतिसे संयुक्त बांधते हैं। उपरिम प्ररूपणा ओघके समान है। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, नारकायु, नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, नरकानुपूर्वी, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ११४ ॥ शंका-'ये बन्धक हैं' यह निर्देश अनर्थक है, क्योंकि, वह ज्ञात अर्थका प्ररूपण करता है। समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, मेधावर्जित अर्थात् मूर्ख जनोंके १ प्रतिषु ' तत्तोदय' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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