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________________ ३, ११२.] पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु बंधसामित्त [१७९ . [सुगमं ।] मिच्छाइटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ११२ ॥ असादावेदणीयस्स पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिण्णो, पमत्त-अजोगिकवलीसु जहाकमेण बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो । एवमरदि-सोगाणं वत्तव्वं, पमत्तापुवकरणेसु बंधोदयवोच्छेददंसणादो । एवं चेव अथिर-असुहाण वत्तव्वं, पमत्त-सजोगिकेवलीसु बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो। अजसकित्तीए पुवमुदओ पच्छा बंधो वोच्छिण्णा, पमत्तसंजद-असंजदसम्मादिट्ठीसु बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो । असादावेदणीय-अरदि-सोगाणं सोदय-परोदएण सव्वगुणट्ठाणेसु बंधो, परावत्तणोदयत्तादो । अथिरासुभाणं सव्वत्थ सोदएण बंधो, धुवोदयत्तादो । अजसकित्तीए मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्टि त्ति सोदय-परोदएण बंधो, एदेसु पडिवक्खोदएण वि बंधुवलंभादो । [यह सूत्र सुगम है । ] मिथ्यादृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ ११२ ॥ असातावेदनीयका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय ब्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, प्रमत्तसंयत और अयोगकेवली गुणस्थानोंमें यथाक्रमसे उसके बन्ध और उद पुच्छेद पाया जाता है । इसी प्रकार अरति और शोकके कहना चाहिये, क्योंकि, प्रमत्त और अपूर्वकरण गुणस्थानों में क्रमशः इनके बन्ध और उदयका व्युच्छेद देखा जाता है। इसी प्रकार ही अस्थिर और अशुभके भी कहना चाहिये, क्योंकि, प्रमत्त और सयोगकेवली गुणस्थानों में उनके बन्ध और उदयका व्युच्छेद पाया जाता है। अयशकीर्तिका पूर्वमें उदय और पश्चात् बन्ध व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, प्रमत्तसंयत और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें क्रमसे बन्ध और उदयका व्युच्छेद पाया जाता है। असातावेदनीय, अरति और शोकका सब गुणस्थानों में स्वोदय-परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, इनका उदय परिवर्तनशील है। अस्थिर और अशुभका सर्वत्र स्वोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी हैं। अयशकीर्तिका मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक स्वोदय-परोदयसे वन्ध होता है, क्योंकि, इन गुणस्थानोंमें प्रतिपक्ष प्रकृतिके उदयके साथ भी उसका बन्ध पाया जाता है । इसके ऊपर परोद्यसे १ प्रतिषु 'सव्व ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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