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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-चउसंठाण-चउसंघडण-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोव अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं देवेसुदयाभावादो बंधोदयाणं पुव्वं पच्छा वोच्छेदपरिक्खा ण कीरदे ।
अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेदा सोदय-परोदएण, अवसेसाओ पयडीओ परोदएणेव बझंति । थीणगिद्धित्तिय-अणंताणुबंधिचउक्क-तिरिक्खाउआणं णिरंतरो बंधो। अवसेसाणं सांतरो, एगसमएण बंधुवरभुवलंभादो । कयावि दो-तिषिणसमयादिकालपडिबद्धबंधदसणादो सांतर-णिरंतरबंधो' किण्ण उच्चदे ? ण, एदासु पयडीसु णिरंतरबंधणियमाभावादो' । एदासिं पयडीणं पच्चया देवगइचउट्टाणपयडिपच्चयतुल्ला । णवरि तिरिक्खाउअस्स पुव्विलपच्चएसु वेउब्बियमिस्स कम्मइयपच्चया अवणेदव्वा । तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुची-उज्जोवाणि तिरिक्खगइसंजुत्तं, अवसेसाओ पयडीओ मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी तिरिक्खमणुसगइसंजुत्तं बंधति, अविरोहादो। देवा सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं च सुगमं । थीण
स्त्यानगृद्धित्रय, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, इनका देवों में उदयाभाव होनेसे बन्ध और उदयके पूर्व या पश्चात् व्युच्छेद होनेकी परीक्षा नहीं की जाती।
अनन्तानुबन्धिचतुष्क और स्त्रीवेद स्वोदय-परोदयसे तथा शेष प्रकृतियां परोदयसे ही बंधती हैं। स्त्यानगृद्धित्रय, अनन्तानुबन्धिचतुष्क और तिर्यगायुका निरन्तर बन्ध होता है। शेष प्रकृतियोंका मान्तर वन्ध होता है, क्योंकि, एक समयमें उनके बन्धका विश्राम पाया जाता है।
शंका-कदाचित् दो तीन समयादि कालसे संबद्ध बन्धके देखे जानेसे सान्तर निरन्तर बन्ध क्यों नहीं कहते ?
समाधान नहीं कहते, क्योंकि इन प्रकृतियों में निरन्तर बन्धके नियमका अभाव है।
इन प्रकृतियोंके प्रत्यय देवगतिकी चतुस्थानिक प्रकृतियोंके प्रत्ययोंके समान हैं। विशेषता केवल यह है कि तिर्यगायुके पूर्वोक्त प्रत्ययों में वैक्रियिकमिश्र और कार्मण प्रत्ययोंको कम करना चाहिये।तिर्यगायु, तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योत, इनको तिर्यग्गतिसे संयुक्त, तथा शेष प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गति और मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, उसमें कोई विरोध नहीं है। देव स्वामी हैं। बन्धाध्वान
१ प्रतिषु ' थोबो' इति पाठः । २ अ-काप्रत्योः ‘णियमामावा' इति पाठः।
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