SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३, ७६. ] मणुस अपज्जत्तरसु बंधसा मित्तपरूवणा [ १३५ सोलसकसाय णवणोकसाय- तिरिक्खाउ - मणुस्साउ तिरिक्खगइ - मणुसगइ एइंदिय - बेइंदियतीइंदिय- चउरिंदिय-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा- कम्मइयसरीर - छसंठाण ओरालियसरीरअंगोवंग-छसंघडण-वण्ण-गंध-रस- फास- तिरिक्खगइ मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-अगुरुवलहुव-उवघादपरघाद-उस्सास-आदाउज्जीव- दो विहायगइ-तस - थावर - बादर - सुहुम-पज्जत्त - अपज्जत्त-पत्तेय-साधारणसरीर- [थिरा-]थिर- सुहासुह-सुभग- दुभग-सुस्सर- दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्तिणिमिण-णीचुच्चागोद-पंचंतराइयाणि त्ति एदाओ एत्थ बज्झमाणपयडीओ । एत्थ थीणगिद्धितिय- इत्थि - पुरिसवेद-तिरिक्खाउ- तिरिक्खगइ - एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय - चउरिंदियजादि - हुंडसंठाणविरहिदपंचसंठाण- असंपत्तसेवट्टवदिरित्तपंचसंघडण - तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वि - परघादु - स्सास-आदावुज्जोव-दोविहायगदि - थावर - सुहुम-पज्जत्त-साहारण- सुभग-सुस्सर - दुस्सर-आदेज्ज - जसकित्ति उच्चा गोदाणं उदयाभावादो बंधोदयाणं संतासंताणं सणिकासाभावादो पुव्वं पच्छा बंधोदयवोच्छेदपरिक्खा ण कीरदे | सेसपयडीणं पि बंधस्सेव एत्थ उदयस्स वोच्छेदाभावादो ण कीरदे | पंचणाणावरणीय चदुदंसणावरणीय-मिच्छत्त-णवुंसयवेद-मणुस्साउ- मणुसगइ-पंचिंदिय - जादि - तेजा - कम्मइय-वण्णच उक्क-अगुरुअलहुअ-तस - बादर - अपज्जत्त-थिराथिर - सुभासुभ- दुभग व असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यगायु, मनुष्यायुं, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयश कीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र, ऊंच गोत्र और पांच अन्तराय, ये यहां बध्यमान प्रकृतियां हैं। इनमें स्त्यानगृद्धित्रय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान से रहित पांच संस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहननको छोड़कर शेष पांच संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, साधारण, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, यशकीर्ति और उच्चगोत्र, इनका उदयाभाव होनेसे विद्यमान बन्ध और अविद्यमान उदयमें समानता न होने के कारण पूर्व या पश्चात् होनेवाले बन्धोदयव्युच्छेदकी परीक्षा नहीं की जाती है। शेष प्रकृतियोंके भी बन्धके समान यहां उदयका व्युच्छेद न होनेसे उक्त परीक्षा नहीं की जाती। पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, मनुष्यायु, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, तेजस व कार्मण शरीर, वर्णादिक चार, अगुरुलघु, त्रस, Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy