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________________ ३, ७५.] मणुसगदीए बंधसामित्तपरूवणा [१३३ . देवेहितो मणुस्सेसुप्पण्णाणमंतोमुहुत्तकालं णिरंतरत्तुवलंभादो । अवसेसाओ सांतरं बझंति, एगसमएण बंधुवरमदंसणादो। एदासिं पच्चया दोसु वि गुणट्ठाणेसु तिरिक्खबेट्ठाणियपयडिपच्चएहि तुल्ला । थीणगिद्धितिय-अणताणुबंधिचउक्कं च मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, इत्थिवेदं दो वि णिरयगईए विणा तिगइसंजुत्तं, तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोवाणि तिरिक्खगइसंजुत्तं, मणुस्साउ-मणुस्सगइ-मणुस्सगइपाओग्गाणुपुव्वीओ मणुसगइसंजुत्तं, ओरालियसरीरचउसंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-पंचसंघडणाणि तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं अप्पसत्थविहायगइदुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणि देवगईए विणा मिच्छाइट्ठी तिगइसंजुत्तं, सासणो तिरिक्खमणुसगइसंजुत्तं बंधइ त्ति । __ सव्वासिं पयडीणं बंधस्स मणुसा सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं सादि-आदिविचारो वि ओघतुल्लो। णिद्दा-पयलाणं पुव्वंपच्छाबंधोदयवोच्छेद-सोदयपरोदय-सांतरणिरंतरं बंधद्धाणं बंधविणट्ठट्ठाणं सादि-आदिबंधपरिक्खा ओघतुल्ला । पच्चया मणुसगईए परूविदपच्चयतुल्ला । मिच्छाइट्ठी चउगइसंजुत्तं, सासणसम्मादिट्ठी तिगइसंजुत्तं, सेसा देवगइसंजुत्तं बंधंति । काल तक निरन्तरता पायी जाती है। शेष प्रकृतियां सान्तर बंधती हैं, क्योंकि, एक समयमें उनके बन्धका विश्राम देखा जाता है । इनके प्रत्यय दोनों ही गुणस्थानों में तिर्यंचोंकी द्विस्थानिक प्रकृतियोंके प्रत्ययोंके समान हैं। स्त्यानगृद्धित्रय और अनन्तानुबन्धिचतुष्कको मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त, स्त्रीवेदको मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि दोनों ही नरकगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त; तिर्यगायु,तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतको तिर्यग्गतिसे संयुक्त; मनुष्यायु, मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीको मनुष्यगतिसे संयुक्त औदारिकशरीर, चार संस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग और पांच संहनन, इनको तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त; तथा अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रको मिथ्यादृष्टि देवगतिके विना तीन गतियोंसे संयुक्त व सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गति एवं मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं। सब प्रकृतियों के बन्धके मनुष्य स्वामी हैं । बन्धाध्वान बन्धविनष्टस्थान और सादि आदिकका विचार भी ओघके समान है। निद्रा और प्रचलाका पूर्व या पश्चात् होनेवाला बन्धोदयव्युच्छेद, स्वोदय-परोदयबन्ध, सान्तर-निरन्तर बन्ध, बन्धाध्वान,बन्धविनष्टस्थान और सादि-आदि बन्धकी परीक्षा ओघके समान है। प्रत्यय मनुष्यगतिमें कहे हुए प्रत्ययोंके समान हैं । मिथ्यादृष्टि चारों गतियोंसे संयुक्त, सासादनसम्यग्दृष्टि तीन गतियोंसे संयुक्त, और शेष गुणस्थानवर्ती देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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