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________________ १२४] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, ६८. मिच्छत्तस्स सोदएणेव, णिरयाउ-णिरयगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुव्वीणं परोदएणेव, सेसाणं सोदय-परोदएहि बंधो । णवरि पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदियजादि-आदाव-थावर-सुहुम-साहारणाणं परोदएण बंधो । पंचिंदियतिरिक्ख-[पजत्त]जोणिणीसु अपज्जत्तस्स परोदएण बंधो । जोणिणीसु णवंसयवेदस्स परोदएण बंधो । मिच्छत्तणिरयाऊणं णिरंतरो बंधो, एगसमएण बंधस्सुवरमाभावादो। सेसपयडीण बंधो सांतरो, एगसमएण बंधवरमदंसणादो । मिच्छत्त-णQसयवेद-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-णिरयगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुवी-एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदिय-आदाव-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणाणं तेवण्ण पच्चया । जोणिणीसु एक्कावण्ण पच्चया । णिरयाउअस्स तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तएसु एक्कावण्ण पच्चया । पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु एगूणवंचास पच्चया । मिच्छत्तं चउगइसंजुत्तं, णqसयवेद-हुंडसंठाणाणि तिगइसंजुत्तं, णिरयाउ-णिरयगइणिरयगइपाओग्गाणुपुव्वीओ णिरयगइसंजुत्तं, एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय-आदावथावर-सुहुम-साहारणे तिरिक्खगइसंजुत्तं, असंपत्तसेवट्टसंघडणमपज्जत्तं च तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं मिच्छाइट्ठी बंधंति । एदासिं पयडीणं बंधस्स तिरिक्खा सामी । बंधद्धाणं बंधविणट्ठाणं मिथ्यात्वका स्वोदयसे ही; नारकायु, नरकगति और नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका परोदयसे ही; तथा शेष प्रकृतियोंका स्वोदय-परोदयसे ही बन्ध होता है। विशेषता यह है कि पंचेन्द्रियादिक तीन प्रकारके तिर्यंचोंमें एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति,आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण प्रकृतियोंका परोदयसे बन्ध होता है। पंचेन्द्रिय तिथंच पर्याप्त और योनिमतियों में अपर्याप्तका परोदयसे बन्ध होता है। योनिमतियोंमें नपंसकवेदका परोदयसे बन्ध होता है। मिथ्यात्व और नारकायका निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, एक समयमें इनके बन्धका विश्राम नहीं होता। शेष प्रकृतियोंका बन्ध सान्तर होता है, क्योंकि, एक समयसे इनके बन्धका विश्राम देखा जाता है। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, नरकगति, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण, इनके तिरेपन प्रत्यय होते हैं । योनिमतियों में इक्यावन प्रत्यय होते हैं । नारकायुके तिर्यंच, पंचन्द्रिय तिर्यंच और पंचोन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्तोंमें इक्यावन प्रत्यय होते हैं । पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियों में उनचास प्रत्यय होते हैं । मिथ्यादृष्टि तिर्यंच मिथ्यात्वको चारों गतियोंसे संयुक्त, नपुंसकवेद व हुण्डसंस्थानको तीन गतियोंसे संयुक्त; नारकायु, नरकगति और नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वीको नरकगतिसे संयुक्त; एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण, इनको तिर्यग्गतिसे संयुक्त; तथा असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन और अपर्याप्तको तिर्यग्गात व मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं। इन प्रकृतियोंके बन्धके तिर्यंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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