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________________ ३, ५८. ] सत्तमपुढवीए बंधसामित्तपरूवणा. णिद्दाणिदा-पयलापयला-थीणगिद्धि-अणंताणुबंधिकोध-माणमाया-लोभ इत्थिवेद-तिरिक्खगइ-चउसंठाण-चउसंघडण-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्जणीचागोदाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ५७ ॥ - सुगमं । मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ५८ ॥ एदस्स अत्थो उच्चदे- अणंताणुबंधिचउक्कस्स बंधोदया समं वोच्छिण्णा, सासणे चेव दोण्णं वोच्छेदुवलंभादो । अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि, सासणसम्मादिष्टिम्हि बंधे वोच्छिण्णे संते पच्छा असंजदसम्मादिट्टिम्हि उदयवोच्छेदुवलंभादो । थीणगिद्धितिय-इत्थिवेद-तिरिक्खगइ-चउसंठाण-चउ ज निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, स्त्रीवेद, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, इन प्रकृतियोंका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ५७॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ ५८॥ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- अनन्तानुवन्धिचतुष्कका बन्ध और उदय दोनों साथ व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, सासादन गुणस्थानमें ही दोनोंका व्युच्छेद पाया जाता है। अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, इनका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें बन्धके व्युच्छिन्न होजानेपर तत्पश्चात् असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उदयका ब्युच्छेद पाया जाता है। स्त्यानगृद्धि आदिक तीन, स्त्रीवेद, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्मतिप्रायो १ अ-आप्रत्योः ' असंजद दिवीहि ', काप्रती ' असंजदसम्माइट्टीहि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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