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छरखंडागमे बंधसामित्तविचा वलंभादो । तदो एदस्स वंधकारणं वत्तव्यमेव । अधवा, असंजद-पमत्त-सजोगिसण्णाओ व्व एवं सुत्तमंतदीवयं सव्वकम्माणं पच्चयपरूवणाए त्ति एवं सुत्तमागदं । कदिहि कारणेहिकिमेक्केण किं दोहि किं तिहिमेवं पुच्छा कायव्वा । एवंविहसंसयम्मि ट्ठिदाणं णिच्छयजणणट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
(तत्थ इमेहि सोलसेहि कारणेहि जीवा तित्थयरणामगोदकम्म बंधंति ॥ ४०॥
तत्थ मणुस्सगदीए चेव तित्थयरकम्मस्स बंधपारंभो होदि, ण अण्णत्थेत्ति जाणावणटुं तत्थेत्ति वुत्तं । अण्णगदीसु किण्ण पारंभो होदि त्ति वुत्ते - ण होदि, केवलणाणोवलक्खियजीवदवसहकारिकारणस्स तित्थयरणामकम्मबंधपारंभस्स तेण विणा समुपत्तिविरोहादो । अधवा, तत्थ तित्थयरणामकम्मबंधकारणाणि भणामि त्ति भणिदं होदि । सोलसेत्ति कारणाणं संखाणिद्देसो कदो । पज्जवट्टियणए अवलबिज्जमाणे तित्थयरकम्मबंधकारणाणि सोलस चेव होति । दवट्टियणए पुण अवलंबिज्जमाणे एक्कं पि होदि, दो वि होति । तदो एत्थ सोलस चेव
नहीं पाया जाता । अतएव इसके बन्धका कारण कहना ही चाहिये। अथवा असंयत, प्रमत्त और सयोगी संज्ञाओंके समान यह सूत्र सब कर्मों की प्रत्ययप्ररूपणामें अन्तर्दीपक है, इसीलिये यह सूत्र आया है । कितने कारगोसे- क्या एकल, क्या दोसे, क्या तीनसे इस प्रकार यहां प्रश्न करना चाहिये । इस प्रकार संशयमें स्थित जीवोंके निश्चयोत्पादनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं---
वहां इन सोलह कारणोंसे जीव तीर्थकर नाम-गोत्रकर्मको बांधते हैं ॥ ४० ॥
मनुष्यगतिमें ही तीर्थकरकर्मके बन्धका प्रारम्भ होता है, अन्यत्र नहीं, इस बातके शापनार्थ सूत्रमें 'वहां ऐसा कहा गया है।
शंका--मनुष्यगतिके सिवाय अन्य गतियों में उसके बन्धका प्रारम्भ क्यों नहीं होता?
__ समाधान-इस शंकांके उत्तरमें कहते हैं कि अन्य गतियों में उसके बन्धका प्रारम्भ नहीं होता, कारण कि तीर्थकर नामकर्मके बन्धके प्रारम्भका सहकारी कारण केवलज्ञानसे उपलक्षित जीव द्रव्य है, अतएव, मनुष्य गतिके विना उसके बन्ध प्रारम्भकी उत्पत्तिका विरोध है। अथवा, उनमें तीर्थकरनामकर्मके बन्धके क.रणोंको कहते हैं, यह अभिप्राय है । 'सोलह' इस प्रकार कारणों की संख्याका निर्देश किया गया है। पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करनेपर तीर्थकर नामकर्मके बन्धके कारण सोलह ही होते हैं। किन्तु द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करने पर एक भी कारण होता है, दो भी होते हैं। इसलिये यहां सोलह ही कारण होते हैं ऐसा अवधारण नहीं करना
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