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________________ २, १, १५.] सामित्ताणुगमे इंदियमग्गणा [६३ जीवविवाइणामकम्मवेयणियाणं' धादिकम्मववएसो किण्ण होदि ? ण, जीवस्स अणप्पभूदसुभग-दुभगादिपजयसमुप्पायणे वावदाणं जीवगुणविणासयत्तविरोहादो । जीवस्स सुहं विणासिय दुक्खुप्पाययं असादवेदणीयं घादिववएस किण्ण लहदे ? ण, तस्स घादिकम्मसहायस्स घादिकम्मेहि विणा सकज्जकरणे असमत्थस्स सदो तत्थ पउत्ती पत्थि ति जाणावणहूं तव्ववएसाकरणादो। तत्थ घादीणमणुभागो दुविहो सबघादओ देसघादओ त्ति । वुत्तं च सव्वावरणीयं पुण उक्कस्सं होदि दारुगसमाणे ॥ हेट्ठा देसावरणं सव्वावरणं च उवरिल्लं' ॥ १४ ॥ शंका-जीवविपाकी नामकर्म एवं वेदनीय कर्मोंको घातिया कर्म क्यों नहीं माना? समाधान नहीं माना, क्योंकि, उनका काम अनात्मभूत सुभग, दुर्भग आदि जीवकी पर्यायें उत्पन्न करना है, जिससे उन्हें जीवगुणविनाशक मानने में विरोध उत्पन्न होता है। शंका-जीवके सुखको नष्ट करके दुख उत्पन्न करनेवाले असाता वेदनीयको घातिया कर्म नाम क्यों नहीं दिया? समाधान नहीं दिया, क्योंकि, वह घातिया कर्मीका सहायकमात्र है और घातिया कौके विना अपना कार्य करने में असमर्थ तथा उसमें प्रवृत्ति-रहित है। इसी बातको बतलानेके लिये असाता वेदनीयको घातिया कर्म नहीं कहा। __ इन कर्मों में घातिया कर्मीका अनुभाग दो प्रकारका है- सर्वघातक और देशघातक । कहा भी है घातिया कर्मोंकी जो अनुभागशक्ति लता, दारु, अस्थि और शैल समान कही गयी है उसमें दारुतल्यसे ऊपर अस्थि और शैल तुल्य भागोम तो उत्कृष्ट सवावरणाय शक्ति पाई जाती है, किन्तु दारुसम भागके नीचले अनन्तिम भागमें ( व उससे नीचे सब लतातुल्य भागमें ) देशावरण शक्ति है, तथा ऊपरके अनन्त बहुभागोंमें सर्वावरणशक्ति है ॥ १४ ॥ १ प्रतिषु -कम्ममयणियाणं ' इति पाठः । २ सत्ती य लदा-दारू-अट्ठीसेलोवमा हु घाणिं । दारुअणंतिमभागो ति देसघादी तदो सव्वं ॥ गो. क. १८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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