________________
६०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, १२. मणुस्सो देवो होदि त्ति ण घडदे ? विसमो उवण्णासो । कुदो ? णिरयगदिआदिचदुगदिउदयाणं व सेसकम्मोदयाणं तत्थ अविणाभावाणुवलंभादो। जिस्से पयडीए उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि जाव चरिमसमओ त्ति णियमेण उदओ होदूग अप्पिदगई मोत्तूण अण्णत्थ उदयाभावणियमो दिस्सइ तिस्से उदएण णेरइओ तिरिक्खो मणुस्सो देवो ति णिदेसो कीरदे अण्णहा अणवट्ठाणादो।
सिद्धिगदीए सिद्धो णाम कधं भवदि ? ॥ १२॥ एत्थ वि पुव्वं व णय-णिक्खेवे अस्सिदूण चालणा कायव्वा उदयादिपंचभावे वा। खइयाए लद्धीए ॥ १३॥
कम्माणं णिम्मूलखएणुप्पण्णपरिणामोखओ णाम, तस्स लीए खइयलद्धीए सिद्धो होदि । अण्णे वि सत्त-पमेयत्तादओ तत्थ परिणामा अत्थि, तेहि किण्ण सिद्धो होदि ?
तिर्यंच, मनुष्यगतिके उदयसे मनुष्य और देवगतिके उदयसे देव यह कथन घटित नहीं होता?
समाधान~यह उपन्यास विषम है, क्योंकि, नारक आदि चार पर्यायोंके प्राप्त होनेमें जिस प्रकार नरकगति आदि चार प्रकृतियोंके उदयका क्रमशः अविनाभावी सम्बन्ध हैं वैसा शेष कर्मोंके उदयोंका वहां अधिनाभावी सम्बन्ध नहीं पाया जाता। उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लगाकर पर्यायके अन्तिम समय तक जिस प्रकृतिका नियमसे उदय होकर विवक्षित गतिके सिवाय अन्यत्र उदय न होनेका नियम पाया जाता है, उसी कर्मप्रकृतिके उदयसे नारकी, तिथंच, मनुष्य और देव होता है, ऐसा निर्देश किया गया है। अन्यथा अनवस्था उत्पन्न हो जायगी।
सिद्ध गतिमें जीव सिद्ध किस प्रकार होता है ? ॥ १२ ॥
यहां भी पूर्वानुसार नय और निक्षेपोंका आश्रय लेकर चालना करना चाहिये, अथवा उदय आदि पांच भावोंके आश्रयले चालना करना चाहिये।
क्षायिक लब्धिसे जीव सिद्ध होता है ॥ १३ ॥
कर्मों के निर्मूल क्षयसे उत्पन्न हुए परिणामको क्षय कहते हैं और उसीकी लब्धि अर्थात् क्षायिक लब्धिके द्वारा सिद्ध होता है।
शंका-सिद्ध गतिमें सत्व, प्रमेयत्व आदि अन्य परिणाम भी तो होते है, उनसे सिद्ध होता है, ऐसा क्यों नहीं कहते ?
१ प्रतिबु तिस्से' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org