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________________ २, १, ११.] सामित्ताणुगमे उदयट्ठाणपरूवणा [ ३९ पयडिट्ठाणमुल्लंघिय छब्बीसपयडिट्ठाणमुप्पज्जदि । एदं कस्स १ सरीरपज्जत्तीए पजत्तयदस्स। केवचिरं? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एत्थ भंगा चत्तारि हवंति । एदे चत्तारि भंगे पढमछव्वीसभंगेसु पक्खित्ते णव भंगा होति । तस्सेव आणापाणपजसीए पजत्तयदस्स छब्बीसपयडीसु उस्सासे पक्खित्ते सत्तावीसपयडीणं उदयट्ठाणं होदि । एत्थ भंगा चत्तारि चेव । सव्वेइंदियाणं सबभंगसमासो बत्तीस | ३२|| पच्चीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानका उल्लंघनकर छब्बीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान उत्पन्न होता है। शंका-यह छव्वीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान किसके होता है ? समाधान–शरीरपर्याप्तिसे पूर्ण हुए एकेन्द्रिय जीवके होता है। शंका-इस छव्वीस प्रकृतियोंवाले उद्यस्थानका समय कितना है ? समाधान--जघन्य और उत्कर्षतः अन्तर्मुहूर्त । यहां (यशकीर्ति-अयशकीर्ति तथा आताप-उद्योतके विकल्पसे) भंग चार हैं । इन चार भंगोंको पूर्वोक्त छव्वीस भंगोंवाले उदयस्थानसम्बन्धी पांच भंगोंमें मिला देनेसे नौ भंग हो जाते हैं। आनप्राणपर्याप्तिसे पूर्ण हुए उसी एकेन्द्रिय जीवके उक्त छव्वीस प्रकृतियोंमें उच्छ्वासको मिलादेनेपर सत्ताईस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है । यहां (यशकीर्ति-अयशकीर्ति और आताप-उद्योतके विकल्पसे ) भंग चार हैं। समस्त एकेन्द्रियोंके सब उदयस्थानसम्बन्धी विकल्पोंका योग होता है बत्तीस (३२)। आताप-उद्योत रहित २१ प्र. स्थान- ५ " " २४ आताप-उद्योत सहित -- २। ये पूर्वोक्त भंगोंमें आ चुके हैं इसलिये इन्हें नहीं जोड़ा। " , २४ , , २७ ३२ विशेषार्थ-गोम्मटसार कर्मकाण्डकी ५८८ आदि गाथाओंमें जो उदयस्थान बतलाये गये हैं उनमें २१ और २४ प्रकृतिसम्बन्धी उदयस्थानोंमें आताप-उद्योत प्रकृतियों के उदयका कहीं उल्लेख या संकेत नहीं किया गया। विग्रहगतिमें व अपर्याप्त अवस्थामें इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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