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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ११. तस्सेव आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुबिल्लपंचवीसपयडीसु उस्सासे पक्खित्ते छब्बीसपयडीणमुदयट्ठाणं होदि । तं कस्स ? आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स । केवचिरं ? जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तूगवावीसवस्ससहस्साणि । एत्थ भंगा पुत्वं व पंचेव होति | ५||
___ आदावुज्जोवुदयसहिदएइंदियस्स वुच्चदे- एक्कवीस-चदुवीसपयडिउदयट्ठाणाणं पुव्वं व परूवणा कादया । णवरि दोहं पि उदयट्ठाणाणं जसकित्ति-अजसकित्सिउदएण दोणि दोणि चेव भंगा ति । कुदो ? आदावुज्जोवुदयभावीणं सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीराणं उदयाभावा । पुणो एदे पुव्वुत्तएक्कवीसचउवीसपयडि उदयद्वाणाणं भंगेसु लद्धा त्ति अवणेदव्या । पुणो सरीरपज्जतीए पज्जत्तयदस्स परघादे आदावुज्जोवाणामेक्कदरं च पुघिल्लचदुवीसपयडीसु पक्खित्ते पणुवीस
उसी आनप्राणपर्याप्तिसे पूर्ण हुए जीवके पूर्वोक्त पच्चीस प्रकृतियों में उच्छ्वास मिला देनेपर छब्बीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है।
शंका-- यह छव्वीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान किसके होता है ?
समाधान--आनप्राणपर्याप्तिसे पूर्ण हुए एकेन्द्रिय जीवके यह छठवीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है ।
शंका-यह उदयस्थान कितने काल तक रहता है ?
समाधान-जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षतः अन्तर्मुहूर्तसे हीन वाईस हजार वर्ष तक यह उदयस्थान रहता है।
यहां भंग पूर्ववत् पांच ही होते हैं (५)।
अब आताप और उद्योत नामकर्म प्रकृतियों के साथ होनेवाले एकेन्द्रियके उदयस्थानोंको कहते हैं-- इनमें इक्कीस और चौवीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानोंकी पूर्ववत् प्ररूपणा करना चाहिये। विशेषता केवल इतनी है कि उक्त दोनों उदयस्थानोंके यशकीर्ति और अयशकीर्ति प्रकृतियोंके उदय सहित केवल दो दो ही भंग होते हैं, क्योंकि, जिन जीवोंके आताप और उद्योतका उदय होनेवाला है उनके सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर, इन प्रकृतियोंका उदय नहीं होता। किन्तु ये दो दो भंग पूर्वोक्त इक्कीस व चौवीस प्रकृतिसम्बन्धी उदयस्थानों में पाये जाते हैं, अतः उन्हें निकाल देना चाहिये।
पुनः शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके परघात तथा आताप और उद्योत इन दोनों से कोई एक, इस प्रकार दो प्रकृतियोंको पूर्वोक्त चौवीस प्रकृतियों में मिला देनेसे
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