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________________ २, ११-२, ४२.] अप्पाबहुगाणुगमे महादंडओ पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ ॥ ३९ ॥ को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेडिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? भवणवासियविक्खंभसूचीए संखेज्जेहि भागेहि गुणिदपंचिंदियतिरिक्खजोणिणिअवहारकालो पडिभागो। वाण-तरदेवा संखेज्जगुणा ॥ ४० ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया। एदम्हादो सुत्तादो जीवट्ठाणदव्यवक्खाणं ण घडदि ति णव्वदे। देवीओ संखेज्जगुणाओ ॥ ४१ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया बत्तीसरूवाणि वा । जोदिसियदेवा संखेजगुणा ॥४२॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया। कुदो ? जोदिसियअवहारकालेण' भागे हिदे संखेज्जरूवोवलंभादो । पंचेन्द्रिय योनिमती तिर्यच असंख्यातगुणे हैं ॥ ३९ ॥ गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग असंख्यात जगश्रेणी प्रथम घर्गमूल गुणकार हैं। प्रतिभाग क्या है ? भवनवासियोंकी विष्कम्भसूचीके संख्यात बहुभागोंसे गुणित पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमतियोंका अवहारकाल प्रतिभाग है। वानव्यन्तर देव संख्यातगुण हैं ।। ४० ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। इस सूत्रसे जीवस्थानका द्रव्यव्याख्यान नहीं घटित होता, ऐसा जाना जाता है । ( देखो जीवस्थान-द्रव्यप्रमाणानुगम सूत्र ३५ की टीका)। वानव्यन्तर देवियां संख्यातगुणी हैं ॥४१॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय या बत्तीस रूप गुणकार है। ज्योतिषी देव संख्यातगुणे हैं ॥ ४२ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है, क्योंकि, ज्योतिषी देवोंके भवहारकालसे ( वानव्यन्तर देवियोंके अवहारकालको) भाजित करनेपर संख्यात रूप उपलब्ध होते हैं। १ प्रतिषु '. काले ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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