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________________ ५७१ छखंड गमे खुद्दाबंधो सिद्धा अणंतगुणा ॥ १९१ ॥ सुगमं । मिच्छाइट्ठी अणंतगुणा ॥ १९२ ॥ एदं पि सुगमं । अण्णेण पयारेण सम्मत्तप्पाबहुगपरूवणमुनरसुतं भणदि--- सव्वत्थोवा सासणसम्माइट्ठी ॥ १९३ ॥ सुगमं । सम्मामिच्छाइट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १९४ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा ससया । उवसमसम्माइट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १९५ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । खइयसम्माइट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १९६ ॥ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। सम्यग्दृष्टियोंसे सिद्ध जीव अनन्तगुणे हैं ।। १९१ ॥ यह सूत्र सुगम है। सिद्धोंसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणे हैं ॥ १९२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। अन्य प्रकारसे सम्यक्त्वमार्गणामें अल्पबहुत्वके निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं सासादनसम्यग्दृष्टि सबमें स्तोक हैं ॥ १९३ ॥ यह सूत्र सुगम है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणे हैं ॥ १९४ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणे हैं ॥ १९५ ॥ गुणकार क्या है । आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे शायिकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणे हैं ।। १९६ ॥ गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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