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________________ ५५८ ) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, १४२. सुगममेदं । असण्णिइत्थिवेदा गम्भोवक्कंतिया संखेज्जगुणा ॥ १४२ ॥ असंखेजवासाउअइस्थि-पुरिसवेदरासिप्पहुडि जाव असण्णिइत्थिवेदगम्भोवतंतियरासि ति तात्र जगपदरभागहारो संखेज्जाणि पदरंगुलाणि । सेसं सुगमं । असण्णी णqसयवेदा सम्मुच्छिमपज्जत्ता संखेज्जगुणा ॥१४३॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया। एत्य जगपदरभागहारो पदरंगुलस्स संखेज्जदिभागो। __ असणिणqसयवेदा सम्मुच्छिमा अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥१४४॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कसायाणुवादेण सम्वत्थोवा अकसाई ॥ १४५ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंज्ञी पुरुषवेदी गर्भोपक्रान्तिकोंसे असंज्ञी स्त्रीवेदी गर्भोपक्रान्तिक संख्यात. गुणे हैं ॥ १४२ ।। . असंख्यातवर्षायुष्क स्त्री पुरुषवेदराशिसे लेकर असंही स्त्रीवेदी गर्भोपक्रान्तिक राशि तक जगप्रतरका भागहार संख्यात प्रतरांगुल है । शेष सूत्रार्थ सुगम है। असंज्ञी स्त्रीवेदी गीपक्रान्तिकोंसे असंज्ञी नपुंसकवेदी सम्मृच्छिम पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं ।। १४३ ॥ गुणकार कितना है ? संख्यात समयप्रमाण है। यहां जगप्रतरभागहार प्रतरांगुलका संख्यातवां भाग है। असंज्ञी नपुंसकवेदी सम्मूच्छिम पर्याप्तोंसे असंज्ञी नपुंसकवेदी सम्मच्छिम अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ १४४ ॥ गुणकार कितना है ? आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। कषायमार्गणाके अनुसार अकषायी जीव सबमें स्तोक हैं ॥ १४५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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