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२, ११, १४१.1 अप्पाबहुगाणुगमे वेदमागणा
[५५७ सण्णिइत्थि-पुरिसवेदा गम्भोवक्कंतिया असंखेज्जवासाउआ दो वि तुल्ला असंखेज्जगुणा ॥ १३९ ॥
कधं दोहं समाणत्तं ? असंखेज्जवासाउएसु इत्थि-पुरिसजुगलाणं चेव समुप्पत्तीदो । णवुसयवेदा सम्मुच्छिमा च असणिणो च सुविणंतरे वि ण तत्थ संभवंति, अच्चंताभावेण अवहत्थियत्तादो। एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कुदो वगम्मदे ? आइरियपरंपरागयउवएसादो । एदम्हादो अइक्कंतरासीणं सव्वेसि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तपदरंगुलाणि जगपदरभागहारो होदि । एत्थ पुण संखेज्जाणि पदरंगुलाणि भागहारो ।
असणिणqसयवेदा गम्भोवक्कंतिया संखेज्जगुणा ॥ १४०॥ . कुदो ? णोइंदियावरणखओवसमस्स पंचिंदिएसु बहुआणमभावादो । असण्णिपुरिसवेदा गम्भोवक्कंतिया संखेज्जगुणा ॥ १४१॥
संज्ञी नपुंसकवेदी सम्मूञ्छिम अपर्याप्तोंसे संज्ञी स्त्रीवेदी व पुरुषवेदी गर्मोपक्रान्तिक असंख्यातवर्षायुष्क दोनों ही तुल्य असंख्यातगुणे हैं ॥ १३९ ॥
शंका-धोनोंफे समानता कैसे है ?
समाधान-क्योंकि, असंख्यातवर्षायुष्कों में स्त्री पुरुष युगलोंकी ही उत्पत्ति होती है। नपुंसकवेदी, सम्मूच्छिम घ असंही जीव स्वप्नमें भी वहां सम्भव नहीं हैं, क्योंकि, वे अत्यन्ताभावसे निराकृत हैं। यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है।
शंका- यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान-यह आचार्यपरम्परागत उपदेशसे जाना जाता है।
इससे सब अतिकान्त राशियोंका जगप्रतरभागहार पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र प्रतरांगुलप्रमाण होता है। किन्तु यहां संख्यात प्रतरांगुल भागहार है।
उपर्युक्त जीवोंसे असंज्ञी नपुंसकवेदी गर्भोपक्रान्तिक संख्यातगुणे हैं ॥१४० ॥ क्योंकि, नोइन्द्रियावरणका क्षयोपशम पंचेन्द्रियों में बहुतोंके नहीं होता।
असंज्ञी नपुंसकवेदी गर्भोपक्रान्तिकोंसे असंज्ञी पुरुषवेदी ग पक्रान्तिक संख्यातगुणे हैं ॥ १४१ ॥
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